|
||
त्रैमासिक - इक्कीसवां संस्करण | अक्टूबर, 2016 |
|
अनुक्रमणिका | हमारा संस्थान | |||||||||||||
|
|
|||||||||||||
‘‘जियो-मनरेगा’’ कार्यक्रम अंतर्गत इसरो की मोबाईल एप्लीकेशन ‘‘भुवन-मनरेगा‘‘ विषय पर जिला एवं जनपद स्तरीय प्रशिक्षण का आयोजन | ||||||||||||||
भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गांरटी योजना के अन्तर्गत जिओ-मनरेगा कार्यक्रम चालू किया गया है जिसे मनरेगा एवं इसरो के साथ मिलकर तैयार किया गया है इसके अन्तर्गत ग्रामीण स्तर पर पंचायत द्वारा तैयार की गई परिसम्पतियों (जैसे -कुएॅ, तालाब, सडकें, वृक्षारोपण, भवन आदि ) का फोटो निर्मित परिसम्पति के पास जाकर खींचना है। यह कार्य रोजगार सहायक द्वारा किया जायेगा तथा इसरो द्वारा तैयार किये गये मोबाइल एप्लीकेशन “भुवन-मनरेगा” पर अपलोड करना है जिससे यह |
परिसम्पति इसरो के मानचित्र में सभी को दिखाई देने लगेगी। इससे लाभ यह होगा की हम देश में मनरेगा द्वारा निर्मित समस्त परिसम्पतियांे की फोटो सहित विस्तृत जानकारी एक ही पोर्टल पर देख सकेगें। इस प्रकार यह मोबाइल एप्लीकेशन बहुत उपयोगी साबित होगा। मध्यप्रदेश के 51 जिलों में से 47 जिलों के जिला एवं जनपद स्तरीय जीआईएस नोडल अधिकारियों के प्रशिक्षण के 6 सत्र महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास एवं पंचायतराज संस्थान जबलपुर तथा 1 सत्र ई.टी.सी. भोपाल में संपन्न कराये गये।
|
|||||||||||||
|
||||||||||||||
‘‘चोल-वंश के समय (850 ई. से 1279 ई.) में स्थानीय शासन व्यवस्था’’ | ||||||||||||||
लेख की प्रासंगिता मध्यप्रदेश में वर्ष 1993 से ‘‘मध्यप्रदेश पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम’’ के प्रावधानों के अनुसार पंचायतराज संस्थाएं कार्य कर रहीं हैं। संविधान के तिहत्तरवें संशोधन और वर्तमान में प्रचलित मध्यप्रदेश के पंचायतराज कानून में उल्लेखित व्यवस्थाओं का आधार ऐतिहासिक रहा है। इतिहास पर द्रष्टि डालें तो हमारी पंचायतराज व्यवस्था अत्यन्त प्राचीन और लोकपोयोगी रहीं हैं। जहां तक की राजाओं के शासित राज्यों में भी स्थानीय शासन व्यवस्था का प्रचलन दिखाई देता है। इसी क्रम में ‘‘चोल-वंश के समय (850 ई. से 1279 ई.) में स्थानीय शासन व्यवस्था’’ कैसी थी ? इस जानने के उद्देष्य से इस लेख को तैयार किया गया है। चोल राजाओं के समय उनकी स्थानीय शासन व्यवस्था को जान कर एक ओर हम उस समय की स्थानीय शासन व्यवस्था, सभा, समिति, ग्राम सभा के महत्व और कामकाज के तरीके से परिचित हो सकेगें वहीं दूसरी ओर हम वर्तमान में चल रही स्थानीय शासन व्यवस्था विशेष रूप से पंचायतराज व्यवस्था और ग्राम सभा के महत्व पर समझ स्पष्ट कर सकते हैं। साम्राज्य का विभाजन
जनता की सहभागिता से गठिन की गई सभाऐं
समितियों के माध्यम से स्थानीय शासन
समितियों के सदस्यों का निर्वाचन
|
समिति सदस्यों की योग्यताएं निर्वाचन में खड़े होने वाले उम्मीदवार में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक था:-
समिति सदस्यों की निर्योग्यताएं निम्नलिखित आधारों पर व्यक्ति निर्वाचन के लिये अनुपयुक्त समझा जाता था:-
समिति सदस्यों की निर्वाचन प्रक्रिया
गांव ‘‘उर’’ की साधारण सभा
ग्राम सभा पर नियंत्रण
आय के स्त्रोत, कर आदि
ग्राम सभाओं के कार्य ग्राम सभाओं के विविध कार्य थे जैसे:-
सन्दर्भ स्त्रोत:
|
|||||||||||||
वर्तमान समय में जेन्डर की संवेदनशीलता | ||||||||||||||
हमारे यहाँ शास्त्रों में कहा गया है कि “यत्र पूजयन्ते नारी तत्र रमयंति देवता” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है। प्राचीन काल से ही भारत मे नारी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। हमारे यहां नारी की विभिन्न रुपों में पूजा प्राचीन काल से ही हो रही है, माँ दुर्गा, माता लक्ष्मी व माँ शारदा (सरस्वती) के रुपों में नारी सदैव पूज्यनीय रही है, जहाॅ नारी एक ओर शर्म व लज्जा की प्रतिमूर्ति है, वही दूसरी ओर माॅ काली व माॅ चण्डी के रुपो में दुष्टों का संहार करने वाली भी है। प्राचीन काल में सती अनसुइया, तारा, मन्दौदरी, द्रोपदी व गार्गी वह नाम है जिन्होंने नारी जाति का ही नही वरन संपूर्ण मानव जाति को गौरवान्वित किया है, कित्तूर की रानी चैत्रमा, बेगम हजरतमाल, चान्दबीबी, रजिया सुल्तान, रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, इत्यादि ने मध्ययुगीन काल में भी नारी का गौरव बढाया है। रानी पद्मिनी का जौहर आज तक नही भूले है, आधुनिक युग में भगिनी निवेदिता, कस्तूरबा गांधी, सरोजनी नायडू, सावित्री बाई फूले, किरण बेदी, इन्दिरा गांधी, कल्पना चावला, आदि ने नारी को समाज में प्रतिस्थापित किया है नारी विद्या, धन और शक्ति की देवी है। किन्तु मध्ययुगीन काल में नारी को भोग की वस्तु माना जाने लगा, उसको घर की चौखट तक लांघने का अधिकार भी नही था यही वजह है कि नारी को हम दोयम दर्जे का नागरिक व पैरों की जूती तक मानने लगे थे उसे व्यापार की वस्तु माना जाने लगा उसकी खरीददारी गुलामों की तरह बोली लगाकर की जाती थी आज भी अनेक स्थानों पर महिलाओं पर अत्याचार हो रहे है आज भी महिलाओं के मंदिर प्रवेश, मस्जिद प्रवेश को लेकर महिलाओं द्वारा आंदोलन चलाये जा रहे है, महिलाओं के ऊपर होने वाले अत्याचार संपूर्ण मानव जाति पर कलंक है जिन्हे मिटाना होगा, इन्ही सभी बातों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान समय में “जेन्डर संवेदनशीलता” का विचार किया जाने लगा। संवेदनशीलता से तात्पर्य यह है कि आज समाज महिलाओं के अच्छे व बुरे के बारे में सोचे, संवेदनशीलता का संबंध हृदय से है, आत्मा से है, संवेदनशीलता से कमजोर के घाव भरे जा सकते है वह स्वयं को पवित्र करती है तथा वेदना को सहलाती है इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए प्रशासन व सरकार को महिलाओं के प्रति संवेदनशील होना अत्यावश्यक है इस हेतु महिलाओं की सत्ता, राजनीति, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार आदि में समान रुप से भागीदारी होना चाहिए। यही कारण है कि प्रदेश सरकार ने महिलाओं को नगरीय निकायों व पंचायत राज संस्थाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया है। जेन्डर क्या है- जेन्डर को सामाजिक रुप से सीखे गए उस व्यवहार प्रतिमानों व अपेक्षाओं से परिभाषित किया जाता है, जो पुरुष व महिलाओं से संबंधित है। लिंग के आधार पर किया गया वर्गीकरण जेन्डर नही है, पुरुषपन व स्त्रीपन जैविक तथ्य है जबकि पुरुषत्व व स्त्रीत्व सांस्कृतिक रुप से सीखा गया अनुभव के आधार पर बना गुण है जैसे जैसे संस्कृति में बदलाव आता है पुरुषत्व व स्त्रीत्व के प्रतिमान भी बदलते रहते है धीरे-धीरे यह सामान्य व्यवहार में शामिल हो जाते है पुरुषत्व व स्त्रीत्व के प्रतिमान सार्वभौमिक नही है भौगौलिक व सांस्कृतिक आधार पर इसमें बदलाव आता रहता है उदाहरण के लिए उत्तर भारत में अनुसूचित जाति की अशिक्षित विधवा महिला अपने व अपने बच्चों के भरण पोषण के लिए खेतों में मजदूरी कर सकती है किन्तु इसी क्षेत्र की अशिक्षित ब्राम्हण विधवा घर के बाहर तक नही निकल सकती है ताकि वह अपने परिवार का भरण पोषण मजदूरी द्वारा कर सके। पुरुषों द्वारा किये गए कार्य का मूल्यांकन, महिलाओं द्वारा उसी प्रकार के कार्य की अपेक्षा ज्यादा होता है वास्तविकता में महिला द्वारा घर की चार दिवारियों में जो घरेलू कार्य किया जाता है उसका तो कभी भी आर्थिक मूल्यांकन किया ही नही गया है वर्तमान में कामकाजी महिलाए घर व बाहर दोनो तरफ की जिम्मेदारी बाखूबी सम्हाल रही है। शिक्षा के क्षेत्र, मीडिया, बाजार, चिकित्सकीय व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, राजनीति, धर्म या संस्कृति ही क्यों न हो सभी जगह जेन्डर जन्य विभेद को बढावा दिया जाता है। |
लिंग जीवाश्म आधारित है जबकि जेन्डर सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश आधारित है, लिंग प्रकृति का जनित है जबकि जेन्डर विविध व विभिन्न होते है, लिंग व्यक्तिक होता है जबकि जेन्डर प्रक्रिया या व्यवस्थागत होता है, लिंग का कोई पदानुक्रम नही है जबकि जेन्डर पदाक्रमानुसार होता है, लिंग परिवर्तनशील नही है जबकि जेन्डर में समय उपरांत परिवर्तन हो सकते है। हमारी सामाजिक व्यवस्था जेन्डर आधारित है हम सभी इसी व्यवस्था से जुडे हुए है हमारी मानसिकता इसी व्यवस्था से संरचित होती है इस व्यवस्था में पुरुष और महिलाओं में दर्जा तय होता है जैविक व नैसर्गिक आधार पर पुरुषों व महिलाओं के बीच कार्य का बटवारा किया गया है इसी आधार पर सामाजिक व्यवस्था बनाई गई है। सामाजिक मान्यता यह है कि पुरुष शक्तिशाली और महिलाएं कमजोर होती है श्रद्धा व परम्पराओं की बात करें तो पुरुष तार्किक व महिलाएं भावनात्मक होती है। हमारा समाज पितृ सत्ता, समाज का अनुयायी रहा है यही कारण है कि निर्णय लेने के मामले में पुरुष की ही सुनी जाती है उसे ही निर्णय लेने का अधिकार है जब तक यह मनोवृत्ति, मानसिकता बदलेगी नही तब तक पुरुषों का ही वर्चस्व कायम रहेगा। इसमें परिवर्तन के लिए हमें समाज में मातृसत्ता को प्रतिस्थापित करने वाले मानदंडो का प्रचार व विस्तार करने की आवश्यकता है तथा इन्हे सामाजिक व कानूनी रुप से मान्यता भी मिलनी चाहिए। सामाजिक नियंत्रण वह प्रकिया है, जिसके अन्र्तगत समाज अपने प्रतिमानों व अपेक्षाओं को व्यक्ति कैसे पूरा करे, सुनिश्चित करता है, इस सामाजिक प्रकिया द्वारा समुदाय अपने सदस्यों से निर्धारित मूल्यों व प्रतिमानों का अनुपालन करवाता है, सामाजिक नियंत्रण अनेकानेक सामाजिक संस्थाओं, नियमों, कानूनों, रीति रिवाजों व संस्कृति द्वारा सुुनिश्चित किया जाता है। हर समाज की अपनी सामाजिक विश्वास, मूल्य व प्रकियाए होती है सामाजिक विश्वास, सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक विधियों के अभिन्न अंग है, सामाजिक व्यवहार से पैदा सामाजिक विश्वास ने स्त्रीयों के साथ भेदभाव आधारित सोच दी है, औरतो को इन विश्वासों के कारण ही बडी मात्रा में हिंसा झेलनी पडती है, इन्ही विश्वासों के कारण महिलाओ को अवसरों से वंचित कर दिया जाता है। पुरुष व महिला के लिए जेण्डर प्रतिमानों व सामाजिक मूल्यों के आधार पर उनका व्यवहार, उनकी भूमिका निर्धारित होती है। भारतीय समाज में महिलाओं व पुरुषों की भूमिका निम्नानुसार निर्धारित की गई है। महिला की भूमिका प्रमुखतः (1) पति की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली (2) सन्तानोत्पादन करने वाली (3) घर के मैनेजर की भूमिका (4) कामकाजी भूमिका (5) रिश्तेदारी मे भूमिका (6) समुदाय में भूमिका जबकि पुरुष की भूमिका (1) मुखिया की भूमिका (2) अभिभावक व सुरक्षा देने वाले की भूमिका (3) परिवार का सम्मान बनाने में भूमिका (4) परिवार, समुदाय व रिश्तेदारी में निर्णायक की भूमिका (5) देश की सेवा करने में भूमिका (6) राजनीति में सक्रियता (7) व्यापार, उद्योग, धंधे में सक्रियता। (1) हमारे जितने भी काम व दायित्व है, वह हमारी सीख व सामाजिकरण का परिणाम है। (2) हम कार्य-कौशल जन्म से या प्रकृति द्वारा नही पाते है वरन इन्हे हम सीखते है (3) पुरुष व महिला को विभिन्न प्रकार के काम करते हुए हम बचपन से देखते है, इससे पुरुष व महिला के कामों के प्रति हमारे दिमाग में एक छवि निर्मित हो जाती है। बच्चों को सीखाने के अवसर उनके रुचि के अनुसार नही होते वह उनके लिंग के आधार पर होते है। जेन्डर आधारित जो पुरुष व स्त्री के बीच काम का बटवारा है वह पक्षपात पूर्ण है, एकांगी है, जिसमें महिलाओं के काम का कोई न तो महत्व है न मूल्य आंका जाता है। यह जेन्डर आधारित विभेदीकरण है। आंकलनों के अनुसार यह पाया गया है कि भारत के 33 प्रतिशत परिवार महिलाओं की आमदनी से पल रहे है और वह परिवार भी समसंख्यक है जिनमें महिलाओं का आप-उपार्जन जिन्दा रहने के लिए निहायत जरुरी है तब भी महिलाओं की बहुत बडी संख्या 52 प्रतिशत रक्त अल्पता जनित अनेक रोगों की शिकार है। अंत में उपरोक्त सभी बातो को ध्यान मे रखते हुए यह आवश्यक है कि हमें अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है, पुरुष प्रधान समाज जब तक पुरुष-महिला समता समाज में परिवर्तित नही होगा, तब तक इस प्रकार के विभेद जारी रहेगें। सामाजिक व कानूनी रुप से महिलाओं के सशक्तिकरण के सार्थक प्रयास किये जाने चाहिए। इस हेतु प्रशासन व सरकार में मानवीयता व संवेदनशीलता का होना बहुत जरुरी है। प्रशासन, समाज व कानून को कमजोर वर्ग गरीब व महिलाओं के प्रति अधिक सहानुभूति पूर्ण रवैया अपनाना चाहिए। संवेदनशील प्रशासन सदैव जन सेवा के लिए समर्पित रहता है।
|
|||||||||||||
प्रकाशन समिति | ||||||||||||||
|
|
|||||||||||||
|
||||||||||||||
Our Official Website : www.mgsird.org, Phone : 0761-2681450 Fax : 761-2681870 | ||||||||||||||
Best View in 1024×768 resolution WindowsXP IE-6 | ||||||||||||||
Designed & Developed by J.K. Shrivastava and Ashish Dubey, Programmer, MGSIRD, JABALPUR |