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मासिक - पच्चीसवां संस्करण | अप्रैल, 2017 |
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अनुक्रमणिका | हमारा संस्थान | |||||||||||||||||||||||||||||||||
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‘‘ग्राम उदय से भारत उदय’’ विषय पर संभाग स्तरीय प्रशिक्षण का आयोजन | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
संस्थान में श्री दीपक खांडेकर, अपर मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश शासन एवं श्री गुलशन बामरा, संभागायुक्त जबलपुर के मार्गदर्शन में ‘‘ग्राम उदय से भारत उदय’’ विषय पर एक दिवसीय संभाग स्तरीय प्रशिक्षण-जबलपुर संभाग का आयोजन दिनांक 07.04.2017 को किया गया। इस प्रशिक्षण में विभिन्न विभागों के अधिकारी एवं कर्मचारियों ने भाग लिया। इस प्रशिक्षण में नीतेश व्यास, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, म. प्र. ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण, भोपाल सहित कलेक्टर, जबलपुर,सिवनी, नरसिंहपुर, |
छिदवाड़ा, डिंडोरी, मण्डला एवं उपरोक्त जिलों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत भी उपस्थित रहे। अपर मुख्य सचिव, श्री दीपक खांडेकर द्वारा ’’ग्राम उदय से भारत उदय’’ अभियान जो कि 14 अप्रैल से 30 मई 2017 तक चलना है, इस अभियान में विभिन्न विभाग एवं उनके कर्मचारियों/अधिकारियों के दायित्वों एवं कर्त्तव्यों की जानकारी भी प्रतिभागियों को दी गई।
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सर्वागिण क्रांति के अग्रदूत - डॉ. बी. आर. अम्बेडकर | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 ई. को महूं छावनी में हुआ था, जो कि अब मध्यप्रदेश के इन्दौर जिले में है। डॉ. अम्बेडकर की प्रारम्भिक शिक्षा सतारा में एवं स्नातक की पढ़ाई मुबंई में हुई। डॉ. अम्बेडकर ने अमेरिका और इंग्लैंड में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी वे ऊंचे दर्जे के समाजविद् और विधि-वेत्ता थे। डॉ. अम्बेडकर ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद देश में व्याप्त इस सामाजिक अन्याय के रहस्य को समझा कि आर्थिक एवं राजनैतिक स्वतंत्रता तब तक व्यर्थ होगी जब तक कि समाज में सामाजिक न्याय व्याप्त न हो। वे समतामूलक समाज एवं सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर थे। वे सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत एवं मसीहा थे। डॉ. अम्बेडकर को बाबा साहेब के नाम से भी लोकप्रियता प्राप्त हुई। स्वतंत्र भारत के संविधान की संरचना में उनका सर्वाधिक योगदान था। आज उन्हें संविधान के शिल्पकार के रुप में याद किया जाता है। डॉ. अम्बेडकर का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष तथा सामाजिक अन्याय के विरुद्ध सामाजिक न्याय की खोज की एक जीवन्त गाथा है, और इस संघर्ष में उन्हें सफलता भी मिली। वे भारत के विधि मंत्री बने और संविधान सभा की प्रारुप समिति के अध्यक्ष रहें। अप्रैल 1947 को डॉ. अम्बेडकर की मान्यता थी कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के बिना राजनैतिक लोकतंत्र अधूरा है। 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ, इससे समता, स्वतत्रता, बधुत्ता, सामाजिक न्याय और परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हुआ। डॉ. अम्बेडकर के क्रांतिकारी विचारों को इस प्रकार समझते है। शैक्षिक अधिकार को पहली क्रांति का दर्जा है। अपने अनुयायियों और दलित बंधुओं को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया और शैक्षिक क्रांति का बीज बोया। आज भारत में उनके नाम से नए महाविद्यालय, विश्वविद्यालय और उच्च शोध संस्थान स्थापित करने में भारतवासी अपना परम सौभाग्य समझते हैं। इस क्रांति के अंतर्गत शिक्षा का अधिकार सभी वर्गो को प्राप्त हुआ है। राजनीतिक अधिकारों की क्रांति को दूसरी क्रांति कहा जाता है हजारों वर्षों से राजनीतिक अधिकार से वंचित दलित समाज के लिए उन्होंने भारी संघर्ष किया और संवैधानिक राजनीतिक अधिकार दिलाए। भारत में घूमकर अनुसूचित जातियों- जनजातियों की वैज्ञानिक ढंग से सूची बनाई जो आज भी मान्य हैं। इससे करोड़ों दलित शिक्षित होकर अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए सजग हुए। संसद, विधान सभा से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक राजनीतिक अधिकार प्राप्त |
करने में सफल हुए। इसके अंतर्गत महिलाओं का आरक्षण संसद, विधान सभा से लेकर ग्रामीण एवं नगरी निकाय की वकालत की गई। तीसरी क्रांति वैचारिक क्रांति के नाम से जानी जाती है। इससे शिक्षा और राजनैतिक अधिकार प्राप्त करके दलितों में वैचारिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ। उनमें आत्मसम्मान और अपनी नई पहचान के लिए सजगता आई। आत्म-विश्वास और अभिमान जाग्रत हुआ। सामाजिक क्रांति उनकी चौथी क्रांति थी। आज वर्षों से शोषित पीड़ित अस्पृश्य जातियां जिन्हें अब दलित तथा संवैधानिक तौर पर अनुसूचित जाति कहा जाता है। सामाजिक परिवर्तन और नव जागृति का अनुभव कर रही है। दलित सर्वहार वर्ग के विचारवान-युवा जब जाग उठेंगे तो भारत का मानचित्र ही कुछ और होगा। संवैधानिक क्रांति उनकी पांचवीं क्रांति थी इसके अंतर्गत डॉ. अम्बेडकर ने भारत की स्वतंत्रता, अखंडता, संप्रभूता और प्रजातांत्रिक व्यवस्था को दृढ़ करने के लिए क्रांति की। वे भारत के नए संविधान के जन्मदाता हैं। वे सहस्रों वर्षों के सामंती, राजसी, मनुवादी दासता के कुचक्र को तोड़ने में सफल हुए। उन्होंने प्रजा मूल्य की स्थापना के लिए संविधान के अंतर्गत अनेक प्रावधान किए। बाबासाहेब के विचारों ने जो छठवीं क्रांति की वह प्रधानतः धार्मिक क्रांति है। उन्होंने बुद्ध पूर्णिमा के दिन नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों को साथ लेकर बौद्ध धर्म अपनाया। इतिहास में यह धर्म परिवर्तन की घटना एक ऐतिहासिक जागृतिक क्रांति थी। इसकी प्रतिध्वनि पूरे विश्व में सुनी गई। सातवीं क्रांति आर्थिक उन्नति से संबंधित है डॉ. अम्बेडकर ने स्पष्टतः घोषित किया कि शिक्षित बनों, संगठित रहो और संघर्षशील बनों। गाँव-कस्बे छोड़ों, गाँवों के रुप में दलित बाड़ों-मुहल्लों को छोड़ों, नगरों की ओर बढ़ो। इसी से आर्थिक संपन्नता के रास्ते भी खुल जाएंगे। आज बाबासाहेब के क्रांतिकारी विचार ना सिर्फ भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए उपयोगी है। उनके विचार प्रत्येक नागरीक के लिए एक प्रगतिशील एवं शाश्वत विचार प्रस्तुत करते है जो निश्चित रुप से प्रजातंत्र, राष्ट्रीय एकता एवं शोषण विहिन समाज के निर्माण का सशक्त आधार प्रस्तुत करते है। इनकी उपादेयता आज के साथ-साथ आने वाले समय में बनी रहेगीं। डॉ. अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण 6 दिसंबर 1956 को 65 वर्ष की आयु में मुबंई में हुआ। उनकी याद में प्रति वर्ष उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के रुप में मनाया जाता है।
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ग्राम पंचायतों द्वारा स्वयं की आय बढ़ाने संबंधी प्रावधान, क्रियान्वयन, चुनौतियां, संभावनाएं | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
संविधान के 73 वें संशोधन में पंचायतों को सशक्त करने एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान किये गये हैं। जिसके अनुसार संविधान के अनुच्छेद 243-ज में कर, शुल्क, पथकर, फीस संग्रह और विनियोजित करने के लिए राज्य का विधान मण्डल द्वारा पंचायतों को प्राधिकृत किया गया है। संविधान संशोधन की मंशा अनुसार मध्यप्रदेश पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 में कर लगाने संबंधी प्रावधान किये गये हैं। अधिनियम की धारा 7 (घ) एवं अनुसूची 1-क एवं 2-क अनुसार कर, शुल्क, पथकर, और फीस लेने के लिए ग्राम सभा को अधिकृत किया गया। धारा 77 में ग्राम पंचायत एवं ग्राम सभा को कर लगाने की शक्ति दी गई है। प्रदेश में पंचायतों को कर तथा फीस लगाने के लिए नियम भी बनाये गये हैं। जिनमें मध्यप्रदेश ग्राम सभा अनिवार्य कर (शर्ते तथा अपवाद) नियम, 2001, मध्यप्रदेश ग्राम पंचायत वैकल्पिक कर तथा फीस (शर्ते तथा अपवाद) नियम, 1996, मध्यप्रदेश ग्राम सभा वैकल्पिक कर तथा फीस (शर्ते तथा अपवाद) नियम, 2001 महत्वपूर्ण हैं। अनुसूची -1-क में ग्राम सभा द्वारा लगाये जाने वाले अनिवार्य करों का उल्लेख किया गया है। जिसमें ग्राम सभा छह हजार रू. से अधिक मूल्य वाली भूमियों, भवनों पर सम्पत्ति कर, निजी सण्डासों पर कर, प्रकाश कर वृत्ति, व्यापार कर लगा सकती हैं। अनुसूची 2 में ग्राम पंचायत द्वारा कर एवं फीस लगायी जा सकती है। ग्राम पंचायत क्षेत्र की सीमाओं के भीतर किराये पर चलाई जाने के उपयोग में आने वाली बैलगाड़ियों, साईकिलों, रिक्शों पर कर, जल कर (रेट) जहां ग्राम पंचायत द्वारा नियमित जल प्रदाय व्यवस्था की जाती है। जलनिकासी के लिए फीस, जहां जल निकास पद्धति ग्राम पंचायत में प्रारम्भ कर दी गई है। मोटरयानों से भिन्न यानों के स्वामियों द्वारा देय फीस, जहां मोटरयानों से भिन्न ऐसे यान ग्राम पंचायत क्षेत्र के भीतर प्रवेश करते हैं। अनुसूची-2-क में ग्राम सभा द्वारा लगाये जाने वाले वैकल्पिक कर एवं फीस का प्रावधान किया गया है। जिसके अन्तर्गत विकास आयुक्त के अनुमति से संघ, राज्य सरकार, ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला परिषद् के या उसमें निहित भवनों, बोर्डिंग हाउस पर भूमि, भवन कर, सवारी या बोझा ढोने वाले पशुओं पर कर, सरायों, धर्मशालाओं, विश्राम गृहों तथा पड़ाव स्थलों के उपयोग के लिए फीस, जल कर, क्रेता, अभिकर्त्ता, आढ़तिया, तुलैया या मापक की वृत्ति कर (मण्डी को छोड़ कर), लोकोपयोगी के विशेष संकर्मो पर अस्थाई कर, सार्वजनिक संडासों के निर्माण या अनुरक्षण के लिए कर तथा कूड़ा कचरा हटाने और उसके व्यपन के लिए सामान्य सफाई कर, बैलगाड़ी स्टैण्ड तथा तांगा स्टैण्ड के लिये फीस, कसी सार्वजनिक स्थान पर अस्थाई संरचना या उसके आगे निकले हुए किसी भाग के लिए या उस पर अस्थाई रूप से अधिभोग रखने के लिए फीस, चारागाह फीस, अन्य कर ग्राम सभाओं द्वारा लिये जा सकते हैं। ग्राम पंचायतों द्वारा स्वयं की आय के स्त्रोत बढ़ाने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं। स्थिति को जानने के लिए हमने जबलपुर के नजदीक की एक ग्राम पंचायत सालीवाडा गौर की जानकारी प्राप्त की गई। जिला पंचायत जबलपुर के अन्तर्गत जनपद पंचायत जबलपुर की ग्राम पंचायत सालीवाड़ा गौर में तीन ग्राम आते हैं। सालीवाड़ा गौर, नीमखेड़ा और उमरिया। यहां की आबादी 5757 एवं मतदाताओं की संख्या 4336 है। यह ग्राम पंचायत जनपद-जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। .हमने ग्राम पंचायत सालीवाड़ा गौर के सरपंच, पंचों, सचिव, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रामवासियों, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत से पंचायतों की आय बढ़ाने के विषय पर चर्चा की। इस अनौचारिक चर्चा में निम्न बातें विचार के लिए प्रस्तुत हैं :-
उक्त सारिणी में ग्राम पंचायत सालीवाड़ा गौर में वर्ष 2011-12 से वर्ष 2015-16 में कर एवं फीस से प्राप्त राशि के आंकड़े दिये गये हैं। ग्राम पंचायत को मुख्यतः जलकर, भवन अनुज्ञा शुल्क और भूमि विकास शुल्क से राशि मिल रही है। ग्राम पंचायत को जो राशि उक्त स्त्रोतों से मिलती है उसका उपयोग ग्राम पंचायत को प्राप्त जलकर से जलप्रदाय में संलग्न कर्मचारियों का वेतन, मरम्मत, बिजली बिल, पाईपलाईन विस्तारीकरण के लिये किया जाता है। भवन अनुज्ञा एवं भूमि विकास शुल्क से प्राप्त राशि का उपयोग गांव में नाली निर्माण, साफ-सफाई, कर्मचारियों का वेतन एवं अन्य अकस्मिक व्यय के लिये करते हैं। ग्राम पंचायत सालीवाड़ा गौर में कर संकलन का अच्छा प्रबंधन किया गया है। जो भी करदाता टेक्स जमा करने आता है उसे ग्राम पंचायत का बैंक खाता बता दिया जाता है। कर दाता द्वारा बैंक में जमा राशि की रसीद ग्राम पंचायत में जमा कर दी जाती है। कर की राशि ऑन लाईन, बैंक में जमा, चैक के माध्यम से प्राप्त की जाती है। नकद जमा करने वाले कर दाता को नकद जमा की रसीद ग्राम पंचायत द्वारा दे दी जाती है। यह राशि उसी दिन 04.00 बजे तक बैंक खाते में जमा कर दी जाती है। यहां पर एक समस्या बताई गई कि, ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत सचिव और ग्राम रोजगार सहायक ही कार्यालय में रहते हैं। कर दाताओं द्वारा कर जमा करते समय सचिव और ग्राम रोजगार सहायक अगर किसी कार्य से |
कार्यालय में नहीं मिल पाते तब कर दाताओं को असुविधा होती है। इसके लिए बताया गया कि, कर संकलन के लिए पृथक से स्टाफ की आवश्यकता है। चुनौतियां एवं संभावनाएंग्राम सभा एवं ग्राम पंचायतों को ग्रामों के विकास एवं व्यवस्थाओं के लिए संविधान के 73 वें संशोधन तथा मध्यप्रदेश के पंचायतराज कानून में वैधानिक अधिकार तो दे दिये गये हैं। इन अधिकारों को मिलने के बाद भी प्रदेश की अधिकांश ग्राम पंचायतें शासकीय योजनाओं में प्राप्त होने वाले आवंटन, अनुदान जैसे संसाधनों पर निर्भर रहती हैं। हमने पंचायतों की आय बढ़ाने के विषय पर आने वाली चुनौतियों एवं संभावनाओं पर ग्रामवासियों, पंचायतराज प्रतिनिधियों और ग्रामीण विकास एवं पंचायतराज व्यवस्था से जुड़े शासकीय क्रियान्वयकों से चर्चा की। इन चर्चा में निम्न बातें जानने मिली :-
शहरी क्षेत्र में नगर पंचायत, नगर निगम को कर संबंधी अधिकार एवं शक्ति दी गई है। उसी प्रकार से ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों को अधिकार एवं शक्तियों दी जावें।
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रिवर लिविंग एन्टिटी:नदी संरक्षण हेतु नई शुरूआत | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
हमारे देश में कुछ नदियों के नाम से श्लोक पढकर उनमें डुबकी लगाई जाती है। सूर्यदेव को इस जल से आचमन किया जाता है। गंगा नदी के जल को मृत्यु शैया में पड़े व्यक्ति को अनिवार्य रुप से पिलाया जाता है, श्रद्धा व विश्वास है कि इससे मोक्ष की प्राप्ति होगी। गंगा नदी के इलाहाबाद के त्रिवेणी में स्नान करने से तो सात जन्म तक की पीढ़ियां तर जाती हैं, ऐसी मान्यता है। देश की अन्य नदियॉं यमुना, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा इत्यादि को भी बडी श्रद्धा से देखा जाता है। एक ओर इन नदियों के प्रति असीम श्रद्धा व दूसरी ओर इनमें हर तरह का प्रदूषित जल, फूल, पन्नी, गोबर, गटर का पानी, ग्रीस, घरों का गंदा पानी छोड़ा जाता है। यह कितना विरोधाभाषी है। देश की प्रमुख नदियॉ गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा इत्यादि का न केवल आध्यात्मिक महत्व है, बल्कि यह सिंचाई, पीने के पानी, बिजली इत्यादि अनेकों चीजों का आधार है। कभी 12 महीने बहने वाली नदियॉ अब नवम्बर, दिसम्बर आते-आते सूख जाती है। हैदराबाद की लूसी नदी तो गटर का पानी ढोने वाली नदी बन कर रह गई है। अन्य नदियों की स्थिति भी कमोवेश अच्छी नही है। परियट नदी गोबर ढोने वाली नदी बन गई है। हालॉकि वर्तमान में प्रशासनिक सक्रियता से कुछ सुधार हुआ है, फिर भी पानी की गुणवत्ता अपेक्षित स्तर पर नहीं पहुंचा है। वर्तमान में म0प्र0 की अधिकांश छोटी नदियों में पानी दिसम्बर तक आते सूख जाती है। 12 महीने बहने वाली हिरन नदी में गर्मी के मौसम में अविरल प्रवाह बंद हो जाता है। मई-जून में, डिंडौरी में नर्मदा नदी की धार नाम मात्र की रह जाती है। हॉल में ही उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा नमामि गंगे मिशन की प्रगति की सुनवाई के दौरान पाया कि गंगा नदी की सफाई के लिए अपेक्षित ठोस प्रयास नही किये जा रहे है। एक एजेन्सी दूसरी एजेन्सी राज्य/केन्द्र पर अपेक्षित सहयोग न मिलने का आरोप लगा रहे है। चूंकि गंगा नदी से 10 राज्यों की 40 प्रतिशत जनसंख्या की आजीविका निर्भर है, अतः इस पर गंभीरता से कार्य किया जाना आवश्यक है। केन्द्र-राज्य व राज्यों के बीच अपेक्षित समन्वय न होने से यह कार्य प्रभावी रुप से नहीं हो पा रहा है। एक राज्य दूसरे पर सहयोग न करने का आरोप-प्रत्यारोप लगाते है। अतः मूल समस्या का समाधान नही हो पाया। ऐसी स्थिति में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा गंगा व यमुना नदी को लिविंग एन्टिटी का दर्जा दिया गया है। इसके पूर्व न्यूजीलैण्ड में वांगानुई नदी को जीवित व्यक्ति (लिविंग एन्टिटी) का दर्जा दिया गया है। यह दुनिया का पहला उदाहरण है जहॉ एक नदी को जीवित इंसान का दर्जा दिया गया है। इसका अर्थ यह है कि यदि इन नदियों को किसी व्यक्ति द्वारा नुकसान पहुॅचाया जाता है, तो वह जीवित व्यक्ति के विरुद्ध किये गए अपराध के समान होगा, व उसी अनुसार नुकसान पहुॅचाने वाले को दंडित किया जा सकेगा। नदी के संरक्षण के लिए कानूनी अभिभावक नियुक्त किये जावेगे, जिनकी जवाबदारी होगी कि वे नदी में हुए किसी भी तरह के नुकसान यथा खनिज का विदोहन, प्रदूषित करना इत्यादि के विरुद्ध कानूनी कार्य करने बाध्य होगे। वे नदी की अस्मिता, सम्मान व स्वास्थ्य को बनाए रखने हर संभव प्रयास करेगे। नदी के विरुद्ध काम करने वालों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की जा सकेगी। गंगा व यमुना नदियों के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा इनके प्रबंधन के लिए बोर्ड के गठन का निर्देश किया गया है। उत्तराखंड महाधिवक्ता, ‘नमामि गंगे मिशन के चेयरमेन व राज्य के मुख्य सचिव को अविभावक नियुक्त किया गया है। हॉल में ही नर्मदा नदी को भी ‘‘लिविंग एन्टिटी‘‘ का दर्जा देने जबलपुर उच्च न्यायलय |
में याचिका दायर की गई है। एक और बात जो इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण है, वह यह कि इसकी "Tributries" अर्थात् गंगा व यमुना में मिलने वाले सहायक नदी, नालों का संरक्षण करना भी इसमें शामिल है। लिविंग एन्टिटी से कालांतर में प्रत्यक्ष लाभ यह होगा कि इसका प्रवाह बनाए रखना होगा। जिस तरह जीवित व्यक्ति को चलने फिरने का अधिकार है उसी तरह नदी को अविरल बहने का अधिकार होगा। जब ऐसा होगा तब, अंधाधुध ग्राउंड वॉटर के विदोहन में रोक लगानी पडेगी। यदि अंधाधुध भू-जल के विदोहन को न रोका गया तो भू जल में प्रदूषित तत्वों की मात्रा बढ़ती जायेगी। इसका शोधन मुश्किल व महंगा होगा। प्रदूषित जल अनेकों बीमारियों को जन्म देगा। पानी के अभाव में, लोगों, पशुओं का पलायन बढेगा व स्थिति बद से बत्तर बनती जायेगी। यदि कभी 2-3 वर्ष सूखा की स्थिति बनी तब न तो हमारी नदियों में पानी होगा और न पीने के लिए पर्याप्त भू जल होगा। ऐसी स्थिति में उस समय की पीढी पूर्व पीढियों को बददुआऐं देगी। ‘‘बददुआ देगे तुझे बाद में आने वाले घर न बनाया था तो कम से कम नींव तो रख दी होती।‘‘ लिविंग एन्टिटी नदियों कि संरक्षण में नींव का कार्य करेगा। अतः ऐसी स्थिति में ‘‘लिविंग एन्टिटी‘‘ का विचार व कानून सतत्् विकास के लिए रीढ़ की हड्डी साबित होगा। देश की बहुत सी नदियों को, जैसे नब्बे के दशक में साबरमती नदी को वहॉ के युवा क्रिकेट के खेल के मैदान के रुप में पहचानते थे, क्योकि अधिकांश समय यह नदी सूखी रहती थी। नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर डेम के पानी के कारण यह नदी पुनजीर्वत हो चुकी है व इसके किनारे को पर्यटन के लिए विश्व स्तर की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। नदियों के अविरल प्रवाह से वॉटर लेवल उपर आने से कृषि के लाभ के साथ ही, साबरमती नदी में पानी के भरने के बाद वहॉ का वॉटरलेवल उपर आने से नगर निगम के बिजली बिल में बहुत कमी आई है। रिवर लिविंग एन्टिटी की अवधारणा है कि जिस तरह छोटे बच्चों का अधिकार दिलाने के लिए कानून है, क्योकि व स्वंय लड़ नही सकते तो इसके लिए उसके गार्जियन/समाज/सरकार/की जबाबदेही होती है। मंदिरों के संरक्षण के लिए सर्वराहकर, ट्रस्ट, शासकीय प्रतिनिधि इत्यादि के द्वारा इनके संरक्षण का कानूनी प्रावधान है। जिसमें ये लोग मंदिरों के संरक्षण के लिए कानूनी रुप से अविभावक माने जाते है, किन्तु नदियों का आध्यात्मिक महत्व तो है किन्तु इनका कोई अविभावक नहीं था, जो इनके विदोहन की स्थिति में आवाज उठाए, कानूनी कार्यवाही करे। अब रिवर लिविंग एन्टिटी के होने पर नदी को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए इनके ‘‘गार्जियन‘‘ की जबाबदारी होगी। इसी तरह कालांतर में अन्य नदियों के बारे में भी जबाबदेही तय करने का रास्ता खुलेगा। गंगा-यमुना नदी को लिविंग एन्टिटी देना एक शुरुवात है। यह अवधारणा कालातंर में और भी विकसित होगी। इससे न केवल नदियॉ स्वच्छ होगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिये यह उपयोगी बनी रहेगी। इस कार्य में कानून अपना कार्य करेगा, साथ ही एक भागीरथ की बजाय करोडों भागीरथों की आवश्यकता होगी। वर्तमान में नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए किया जा रहा जन जागरण इस दिशा में अभिनव प्रयास है।
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‘‘नमामि देवी नर्मदे’’ नर्मदा सेवा यात्रा में माननीय मंत्री जी का शहपुरा, जिला-जबलपुर में जनसंवाद | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
‘‘नमामि देवी नर्मदे’’ नर्मदा सेवा यात्रा में जनसंवाद हेतु दिनांक 13 अप्रैल, 2017 को माननीय मंत्री जी, मध्यप्रदेश शासन, पंचायत ग्रामीण विकास विभाग श्री गोपाल भार्गव सम्मिलित होने शहपुरा भिटौनी जिला जबलपुर पहुंचे। |
वहां पहुंचकर ‘‘पुण्य सलिला माँ नर्मदा’’ के तट पर आरती की। इस भव्य गरिमामय कार्यक्रम में माननीय मंत्री जी ने अपने उद्बोधन में माँ नर्मदा के ऐतिहासिक महत्व का उल्लेख किया तथा साथ ही वर्तमान समय में जीवनदायिनी माँ नर्मदा का संरक्षण क्यों आवश्यक है, इस के संबंध में भी बतलाया। इस कार्यक्रम में संत श्री अखिलेशानंद जी, संत श्री गिरीशानंद जी, संत जैन मुनि, पूर्व मंत्री श्री अजय विश्नोई, बरगी विधायक श्रीमति प्रतिभा सिंह, नगर पंचायत परिषद शहपुरा भिटौनी की अध्यक्ष श्रीमति शिवांगी सिंह, कलेक्टर जबलपुर श्री महेश चंद्र चौधरी सहित सैकडों की संख्या में नर्मदा सेवा यात्री उपस्थित थे।
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