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मासिक - छब्बीसवां संस्करण मई, 2017
अनुक्रमणिका हमारा संस्थान
  1. माननीय मंत्री जी द्वारा ‘‘ग्राम उदय से भारत उदय’’ अभियान का शुभारंभ
  2. अपनी बात ....
  3. पंचायतराज में ग्राम सभा के माध्यम से ग्रामीण विकास की अवधारणा
  4. एक परिचय - पं. दीनदयाल उपाध्याय
  5. आपदा प्रबंधन में पंचायतों की भूमिका
  6. उपभोक्ता के अधिकार
  7. ’’महिला सशक्तिकरण’’ पर सफलता की कहानी

माननीय मंत्री जी द्वारा ‘‘ग्राम उदय से भारत उदय’’ अभियान का शुभारंभ

भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विगत वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूरे भारत में अम्बेडकर जयंती 14 अप्रैल 2017 पर अभियान का शुभारंभ किया गया।

31 मई 2017 तक चलने वाले इस अभियान में म.प्र.शासन के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री गोपाल भार्गव ने भोपाल जिले की जनपद पंचायत बैरसिया के ग्राम हर्राखेड़ा में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकरजी की चित्र पर माल्यार्पण कर अभियान का शुभारंभ किया।

मंत्री जी ने जनसंवाद में उपस्थित ग्रामवासियों से भी चर्चा की। मंत्री जी द्वारा पात्र हितग्राही को शासन द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ मिल सकें, इस हेतु कार्यक्रम पर उपस्थित शासकीय अमले को निर्देशित किया गया।

छिदवाड़ा, डिंडोरी, मण्डला एवं उपरोक्त जिलों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत भी उपस्थित रहे।

इस अभियान के शुभारंभ पर जनप्रतिनिधिगण श्री विष्णु खत्री, माननीय विधायक विधानसभा क्षेत्र बैरसिया, श्री मनमोहन नागर, माननीय अध्यक्ष, जिला पंचायत भोपाल तथा जनपद पंचायत बैरसिया के माननीय अध्यक्ष, माननीय उपाध्यक्ष के साथ-साथ विभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारीगण श्री व्ही.के बाथम, प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, श्री अजातशत्रु श्रीवास्तव, आयुक्त भोपाल संभाग भोपाल, श्री निशांत वरवडे़, कलेक्टर जिला भोपाल, श्री आशीष भार्गव, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत भोपाल, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत बैरसिया आदि उपस्थित रहें।

  अनुक्रमणिका  
पंचायतराज में ग्राम सभा के माध्यम से ग्रामीण विकास की अवधारणा
अपनी बात .....

‘‘पहल’’ मासिक ई-न्यूज लेटर का छब्बीसवां संस्करण का प्रकाशन किया जा रहा है, जो इस साल का मासिक संस्करण के रूप में पांचवा संस्करण है।

मध्यप्रदेश शासन में इस वर्ष ‘‘ग्राम उदय से भारत उदय’’ अभियान का प्रारंभ माननीय मंत्री, म.प्र. शासन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा किया गया, जिसे आलेख द्वारा प्रस्तुत किया गया है। ‘‘पंचायतराज में ग्राम सभा के माध्यम से ग्रामीण विकास’’ पर एक लेख एवं साथ ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मशताब्दी वर्ष में जीवन परिचय पर एक आलेख प्रस्तुत किया गया है।

इसके अतिरिक्त ‘‘आपदा प्रबंधन में पंचायतों की भूमिका’’ पर एक लेख प्रस्तुत किया गया है, जिसके द्वारा आपदा प्रबंधन पर पंचायतों की भूमिका को सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है तथा ‘‘उपभोक्ता के अधिकार’’ के माध्यम से आज बढ़ती विभिन्न वस्तुओं की खरीददारी पर उपभोक्ता के अधिकारों को आप तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है एवं ‘‘महिला सशक्तिकरण’’ पर सफलता की कहानी लेख के माध्यम से गरीब महिला समूह द्वारा उनकी आजीविका में की कई प्रगति को परिलक्षित किया गया है।

हमें पूर्ण विश्वास है कि आपको ‘पहल’ का यह संस्करण रूचिकर लगेगा क्योंकि इस संस्करण में हमने अलग-अलग कई विषयों पर आलेख प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
शुभकामनाओं सहित।

संजय कुमार सराफ
संचालक

ि़त्रस्तरीय पंचायतराज व्यवस्था में ग्राम सभा को बहुत ही शक्तिशाली संवैधानिक संस्था के रूप में माना गया है, धारा (5) ’’क’’ में ग्राम सभा का गठन किया गया है, पंचायतराज व्यवस्था 1993 के तहत 73 वे संविधान संशोधन के तहत ग्राम सभा को ग्रामीण विकास एवं ग्राम विकास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में है धारा 21 ’’क’’ में तो ग्राम सभा को इतना महत्वपूर्ण अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी ग्राम पंचायत स्तर के चुने हुये प्रतिनिधि को वापिस बुलाने की कार्यवाही कर सकती हैं । लेकिन इस सबके लिये हमारे ग्रामीण क्षेत्र की जनता को अपने अधिकार, कर्त्तव्य एवं केन्द्र शासन एवं राज्य सरकार की हितग्राही मूलक योजनाओं की जानकारी पूर्ण रूप से होनी चाहिये । उन्हें वर्ष में होने बाली चारों ग्राम सभाओं में निश्चित रूप से जाना चाहिये, क्योंकि अब पूर्ण ग्राम स्वराज के तहत हर ग्राम की अपनी स्वत्रंत ग्राम सभा होगी, ग्राम सभा के सदस्यों को जनवरी माह में होने वाली ग्राम सभा में निश्चित रूप में जाना चाहिये क्योंकि वर्ष भर के ग्राम पंचायतों में हुये सामुदायिक मूलक कार्यो का सामाजिक अंकेक्षण एवं केन्द्र सरकार की विभिन्न हितग्राही मूलक योजनाओं का वरीयता क्रम में चयन किया जाता है। वहां जाकर सचिव द्वारा लिखी जा रही कार्यवाही विवरण पर अपने हस्ताक्षर करना चाहिये एवं सचिव से उस दिनांक में हुई ग्राम सभा का कोरम एवं उस पर लिखी गई कार्यवाही का विस्तृत रूप से पढ़कर सभी ग्राम सभा के सदस्यों को सुनवाना चाहिये। ग्राम सभा के सदस्य का चयन जिस योजना हेतु किया गया है उसमें उसका चयन हुआ या नहीं यह सब देखना हम सभी ग्राम सभा के सदस्यों का एक महत्वपर्ण कार्य है।

आपने यह सामान्यतः देखा होगा कि जिस ग्राम की ग्राम सभा के सदस्य अपने अधिकार एवं दायित्वों के प्रति सजग होगा, उस ग्राम पंचायत का विकास बहुॅत ही ससक्त ढंग से हुआ है, क्योंकि वहां पर पंच - सरपंच एवं सचिव अपने स्वेच्छा से काम नहीं कर पाते है। उन्हें ग्राम सभा के सभी सदस्यों को अपने साथ में ग्राम पंचायत की पूर्ण विकास की अवधारणा के साथ हाथ मिलाकर आगे बढ़कर अपने ग्राम का संपूर्ण विकास करने में ग्राम सभा को एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में , ि़त्रस्तरीय पंचायत राज्य व्यवस्था में स्मार्ट ग्राम स्मार्ट पंचायत की अवधारणा को चरितार्थ करना होगा।

ग्राम सभा का महत्वपूर्ण कार्य संपूर्ण ग्राम का विकास हो, ग्राम आर्थिक दृष्टि से विकसित और समृद्ध हो, राजनीतिक दृष्टि से राष्ट्र की प्रमुख एवं महत्वपूर्ण इकाई ग्राम आत्मनिर्भर होकर अपने ग्राम सभा के सभी सदस्यों को साथ में लेकर पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम म0प्र0 में पंचायत राज को ग्राम स्तर पर ग्राम स्वराज के रूप में एक विधिमान्य संस्था के रूप में सथापित करने का प्रयास हुआ है । क्योंकि अब ग्राम सभा मांत्र सिफारिश करने वाली इकाई न होकर एक महत्वपूर्ण क्रियान्वयन दल के रूप में पंचायत राज व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण एवं संपूर्ण ग्राम विकास की अवधारणा को चरितार्थ कर रही है।




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केशव सिंह परमार,
संकाय सदस्य
एक परिचय - पं. दीनदयाल उपाध्याय

‘‘हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारतमाता है, केवल भारत ही नही। माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जंमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जाएगा।‘‘
- पं. दीनदयाल उपाध्याय

किसी ने सच ही कहा है कि कुछ लोग सिर्फ समाज बदलने के लिये जन्म लेते है और समाज भला करते हुये ही खुशी से मौत को गले लगा लेते है, उन्ही में से एक थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय जिन्होने ने अपना पूरा जीवन समाज के लोगो के कल्याण के लिये समर्पित कर दिया।

दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को मथुरा जिले के छोटे से गाँव नगला चन्द्रभान में हुआ था। इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था। माता रामप्यारी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।

3 वर्ष की मासूम उम्र में दीनदयाल पिता के प्यार से वंचित हो गये। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया। 8 अगस्त 1924 को रामप्यारी बच्चों को अकेला छोड़ ईश्वर को प्यारी हो गयीं। 7 वर्ष की कोमल अवस्था में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये।

उपाध्याय जी ने पिलानी, आगरा तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। बी०.एससी० बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता हो गये थे।

अतरू कालेज छोड़ने के तुरन्त बाद वे उक्त संस्था के प्रचारक बन गये और एकनिष्ठ भाव से संघ का संगठन कार्य करने लगे। उपाध्यायजी नितान्त सरल और सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे।

सन 1951 ई० में अखिल भारतीय जनसंघ का निर्माण होने पर वे उसके संगठन मन्त्री बनाये गये। दो वर्ष बाद सन् 1953 ई० में उपाध्यायजी अखिल भारतीय जनसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए और लगभग 15 वर्ष तक इस पद पर रहकर उन्होंने अपने दल की अमूल्य सेवा की। कालीकट अधिवेशन (दिसम्बर 1967) में वे अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 11 फरवरी 1968 की रात में रेलयात्रा के दौरान मुगलसराय के आसपास मृत अवस्था में पाए गए ।

विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनगिनत गुणों के स्वामी भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारतवर्ष में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ 52 साल क उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए। अनाकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी दीनदयालजी उच्च-कोटि के दार्शनिक थे किसी प्रकार का भौतिक माया-मोह उन्हें छू तक नहीं सका। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उनके हिंदी और अंग्रेजी के लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। केवल एक बैठक में ही उन्होंने चन्द्रगुप्त नाटक लिख डाला था।

पंडितजी के द्वारा लेखन- एकात्म मानवाद, लोकमान्य तिलक की राजनीति, जनसंघ का सिद्वांत और नीति, जीवन का ध्येय राष्ट्रजीवन की समास्यायें, राष्ट्रीय अनुभूति, कश्मीर, अखंड भारत, भारतीय राष्ट्रधारा का पुनः प्रवाह, भारतीय संविधान, इनको भी आजादी चाहिए, बेकारी की समस्या, भारतीय राजनीति, अमेरिकी अनाज, टैक्स या लूट, विकास की एक दिशा, डिवैलयूएशन ए ग्रेटकाल आदि है।

संस्कृतिनिष्ठा दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला सुत्र है उनके शब्दों में- “भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।”




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पंकज राय,
संकाय सदस्य
आपदा प्रबंधन में पंचायतों की भूमिका

आपदा प्रबंधन में पंचायतराज संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। पंचायतें अपनी भूमिका अच्छे से निभा सकें इसके लिए आपदा के संबंध में उन्हें जानकारी देने के साथ ही साथ आपदा प्रबंधन के तरीके सिखाने की आवश्यकता है।

शहरी इलाका हो या ग्रामीण इलाका, मोटे तौर पर देखा जावे तो आपदाओं का प्रमुख कारण या तो प्राकृतिक होता है या फिर मानव द्वारा बनाई गई आपदा। अगर हम बात करें तो प्राकृतिक आपदा में बाढ़, सूखा, चक्रवात, ओलावृष्टि, बादल फटना, ठंडी व गर्म हवाओं का बहना, समुद्री तूफान आना, भूकंप, भू-स्खलन, खदान की आग, जंगल की आग, बर्फ का फिसलना आदि आपदाओं को सम्मिलित किया जा सकता है। दूसरी आपदा जो कि मानव द्वारा बनाई जाती है। ये केवल मनुष्य द्वारा अपने स्वार्थ के लिए कार्यों को जान बूझकर या गलती से पर्यावरण के साथ छेड़छाड़, वैज्ञानिक नियमों का दुष्प्रयोग आदि से घटित होती हैं। अतः इन दोनों प्रकार की आपदाओं में पंचायतराज संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

आपदाओं से निपटने एवं त्वरित सहायता उपलब्ध कराने के लिए पंचायतें सक्षम होनी चाहिए। पंचायतों को ऐसी तैयारियां रखनी चाहिए कि कोई दुर्घटना घटे ही नहीं। यदि कोई प्राकृतिक प्रकोप हो भी जाए तो उन पर शीघ्र काबू पाया जा सके। पंचायतों को अपने कार्यालय में सभी विभागों के पते, टेलीफोन नम्बर आदि रखने चाहिए जिससे आपदा के समय उनका उपयोग किया जा सके।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 - आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार केंद्र, राज्य व जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन अभिकरणों का गठन किया जा चुका है। इसी के अनुसार विभिन्न संस्थाओं के सदस्य आपदा राहत कार्यदल के रूप में भी कार्य करते हैं। पंचायतें इन अभिकरणों व राहत कार्यदलों से संपर्क साधकर अपने क्षेत्र की संभावित आपदा से निपटने के बारे में ग्रामीणों में से कुछ इच्छुक युवाओं को प्रशिक्षण दिलेवा सकती हैं। जो आपदा घटित होने पर बचाव कार्य में सहयोग कर सकें। पंचायत अपने क्षेत्र में आपदा प्रबंधन समिति का गठन कर सकती है।

आपदा प्रबंधन विषय पर पंचायत राज अधिनियम के प्रावधान - मध्यप्रदेश पंचायतराज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 में आपदाओं से निपटने के लिए ‘‘आग की रोकथाम, आग बुझाने और ऐसे आग लग जाने पर संपत्ति की सुरक्षा करने के लिए, रक्षा समिति की स्थापना ग्राम सभा द्वारा करने का प्रावधान किया गया है। (धारा - 7 की उपधारा (ज ज) के उपखण्ड (ख)), अधिनियम में यह भी प्रावधानिक किया गया है कि, ग्राम सभा की ग्राम विकास समिति द्वारा ‘‘ग्राम की सुरक्षा जैसे कि जीवन तथा संपत्ति की सुरक्षा, बाढ़, सूखा, भूकंप, आदि के कारित कष्ट में राहत से संबंधित कार्य’’ किया जावे। (धारा 7-क ‘‘मध्यप्रदेष ग्राम सभा (समितियों के सम्मिलन, कामकाज के संचालन की प्रक्रिया तथा संबद्ध विषय) नियम 2005 नियम 13.2 (ङ))। इसके साथ ही साथ जनपद एवं जिला पंचायत की सामान्य प्रषासन समिति स्थायी समिति द्वारा ‘‘बाढ़, सूखा, भूकम्प, ओलावृष्टि, दुर्भिक्ष, टिड्डी दल तथा अन्य ऐसी आपतिक स्थितियों से उत्पन्न होने वाली आपदाओं से राहत’’ देने संबंधी प्रावधान किये गये हैं। जनपद पंचायत के कार्यो में आग, बाढ़, सूखा, भूकम्प, दुर्भिक्ष, टिड्डीदल, महामारी, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में आपतिक सहायता की व्यवस्था को सम्मिलित किया गया है। (धारा 50 उपधारा 1. (ख))

आपदाओं की पहचान - ऐसी कौन-कौन सी आपदायें हैं, जो उनकी ग्राम पंचायत क्षेत्र में आ सकती हैं, उनकी पहचान करके पहले से रख ले। आपदाओं की पहचान करने का काम ग्राम सभा की बैठक में किया जा सकता है। बैठक में सभी सदस्यों से सलाह-मषवरा करके आपदाओं की सूची बना ली जावे। अब पंचायत यह देखे कि उनके क्षेत्र में कितनी आपदाऐं आ सकती है। इसके बाद एक-एक आपदाओं पर चर्चा के माध्यम से उनके निदान के उपाय क्या हो सकते हैं, इस पर विचार-विमर्श करे। आप देखेगें कि अब ग्राम पंचायत के पास आपदाओं की सूची भी है और उनसे निपटने के उपाय भी हैं।

संपर्क सूत्रों की जानकारी - पंचायतों द्वारा आपदाओं से निपटने के लिए उन विभागों की पहचान भी कर ली जावे जिनकी मदद ली जावेगी। संबंधित विभागों व बचाव दलों के पतों, संपर्क सूत्रों, फोन नंबंरों व अन्य सूचना सूत्रों व संपर्को को एक मास्टर फाईल में तैयार कर रख लिया जावे। पंचायतों द्वारा इन जानकारियों को ग्रामीण क्षेत्र के सार्वजनिक स्थलों पर लिखवाया व चिपका दिया जावेगा तो बहुत अच्छा रहेगा।

पंचायत भवन में फोन की सुविधा हो एवं प्रशासनिक कार्यालयों, पुलिस नियंत्रण कक्ष, अस्पताल, अग्निशमन केन्द्रों के दूरभाष नम्बर की सूची लगी होनी चाहिए।

पंचायत प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण - आपदाओं के संबंध में ग्रामीण समुदाय, पंचायत प्रतिनिधियों को जानकारी दी जावे। इसके लिए पंचायतें समय-समय पर अपनी ग्राम पंचायतों में संबंधित विभाग के अधिकारियों, विषय-विशेषज्ञों को आमंत्रित कर चर्चा-वार्ता करे। चर्चा में प्रमुख रूप से आपदा और उससे सजग रहने, बचने के उपायों की जानकारी दी जावे।

बचाव दल - गाँव के उत्साही तथा सेवा-भावी नौजवानों का एक दल बनाना चाहिए। इन्हें दुर्घटनाओं एवं आपदाओं से निपटने के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इन युवकों को अग्निशमन, प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी दी जानी चाहिए।

योजनाओं की जानकारी - मृत्यु एवं प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली हानि के पुनर्भरण हेतु सरकार तथा बीमा कम्पनियों की विभिन्न योजनाएं हैं जिनकी जानकारी देकर पीड़ितों को सहायता दिलानी चाहिए। आपदा में फंसे लोगों के लिए भोजन, शुद्ध जल एवं आवास की व्यवस्था की जानी चाहिए।

आपदा प्रबन्धन का प्रवेश द्वार स्कूल - स्कूल किसी भी समुदाय के भरोसे का प्रतीक होते हैं। आपदा के समय अक्सर स्कूलों को शरणस्थली बनाया जाता है। यहीं पर स्वास्थ्य सेवाएं और खाने-पीने की चीजें भी एकत्रित कर उन्हें बाँटा जाता है। पुलिस, सेना अपना पड़ाव प्रायः वहीं डालती हैं। स्कूल शिक्षा का केन्द्र होने से नागरिक जागरूकता में भी मदद कर सकते हैं। स्कूल ‘जोखिम शिक्षा’ के लिए माकूल माहौल बनाते हैं। स्कूली बच्चों, शिक्षकों और अन्य लोगों को आपदा व उसके निवारण के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।

जागरूकता बढ़ाना सफल आपदा प्रबन्धन की एक महत्वपूर्ण शर्त है। यह कार्य स्कूल के माध्यम से किया जा सकता है। गाँवों में स्कूल का पक्का, अच्छा एवं थोड़ी ऊँचाई पर बना वन आपदा के समय श्रेष्ठ शरणस्थल बन सकता है। अतः स्कूल एवं चिकित्सालय निर्माण के समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए कि आपदा के समय ये स्थान अच्छे शरणस्थल साबित हो सकते हैं। यदि सम्भव हो तो इन्हें आसपास बनवाएं।

वैकल्पिक संचार प्रणाली - एक प्रभावी सूचना प्रणाली के माध्यम से आपदा राहत समिति को सक्रिय किया जा सकता है। त्वरित सूचना और समन्वय का प्रभावी तंत्र कुशल आपदा प्रबन्धन की महत्वपूर्ण शर्त है। प्रायः आपदा के समय संचार तंत्र, विद्युत व्यवस्था अथवा आवागमन के साधनों में बाधाएं आ जाती है। इसके लिए वैकल्पिक संचार प्रणाली की भी व्यवस्था रहनी चाहिए। ध्यान रहे कि यह संचार प्रणाली आत्मनिर्भर हो जैसे बैटरी से चलने वाला रेडियो या इंटरनेट आदि। सही एवं समय पर सूचना लोगों की जान बचाने के लिए आवश्यक है।

सामुदायिक आपदा प्रबन्धन कोष - समुदाय आधारित आपदा प्रबन्धन के लिए संस्थानीकरण के अलावा अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकता है व्यय हेतु कोष जुटाना। स्थानीय समुदाय के नियंत्रण में एक कोष का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए घर-घर से चन्दा जुटाकर सामुदायिक आपदा कोष बनाया जाए। सरकार भी आनुपातिक मदद करे। कोष में लोग अपनी आय का एक अंश अपनी सुरक्षा के लिए नियमित रूप में देते रहें। इन निधियों का इस्तेमाल आपदाओं का बुरा असर कम करने के लिए तत्काल किया जा सकता है।




  अनुक्रमणिका  
डॉ.संजय राजपूत,
संकाय सदस्य
उपभोक्ता के अधिकार

भारत दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला दूसरा सबसे बडा देश है। अधिक जनसंख्या के कारण यहॉ दुनिया का सबसे बडा बाजार भी है जिसमें बहुत बडी संख्या मे उपभोक्ता अथवा ग्राहक भी इस देश मे है जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों एवं सेवाओं का उपभोग करते है किंतु इतना बडा बाजार होते हुए भी अभी भी हमारे देश मे उपभोक्ताओं के संरक्षण के संबंध मे एवं उपभोक्ताओ के अधिकारों के संबंध मे जानकारी का आभाव महसूस होता है आज हमारे देश मे प्रतिदिन दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं एवं आवश्यक सेवाओं का क्रय-विक्रय तो बहुत होता है किंतु उत्पाद किस गुणवत्ता का है अथवा मिलने वाली सेवाएॅं किस प्रकार की है एवं क्या उपभोक्ता इनसे संतुष्ट है कि नही इन सब बातों पर अभी लोगो का ध्यान ज्यादा नही जाता है आज भी हमारे देश मे छोटे एवं मझौले शहरों मे व्यक्ति किसी वस्तु का क्रय करते समय न तो उस वस्तु के बारे मे दी गई जानकारी पढता है और न ही उसका बिल लेने मे रूचि रखता है उसकी इसी बात का फायदा उठाकर विक्रेता उसे ऐसी वस्तु दे देता है जो कि मानक के हिसाब से सही नही होती है। किंतु ग्राहक भी यह सोचकर कि वह कुछ नही कर सकता एवं उसे उपभोक्ता के अधिकारो की जानकारी का आभाव होता है और वह किसी भी प्रकार की कानूनी झझंट मे नही पडना चाहता है। ग्राहक की इसी कमजोरी अथवा लापरवाही के कारण कंपनियॉं अथवा विक्रेता आसानी से खराब उत्पाद बेचकर भी बच निकलता है।

हमारे दैनिक जीवन मे उपभोक्ता सुबह से शाम तक शोषित होता है । हमारे देश में पीड़ित उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के लिए समय समय पर प्रयास किए गए हैं । परंतु उपभोक्ताओं का शोषण पूरी तरह से रोकने में कामयाब नहीं हो पाया है । खाद्य अपमिश्रण अधिनियम, माप-तौल मानक अधिनियम तथा विभिन्न नियमों के अंतर्गत उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए धाराऐं भी बनायी गयी । परंतु आज भी उपभोक्ता शोषित हो रहा है । भारत सरकार ने एक ठोस प्रयास के तहत उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिएउपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाया तत्पश्चात उसमें समय-समय आवश्यकता के आधार पर पर संशोधन किए गये।

इस अधिनियम के अंतर्गत तीन स्तर पर उपभोक्ता न्यायलयों का गठन किया गया है । उपभोक्ताओं को न्याय प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग का गठन किया गया है । साथ ही देश के प्रत्येक राज्य में राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग के गठन किए गए । जबकि जिला स्तर पर देश भर में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम गठित करके उपभोक्ताओं को शीघ्र, सुलभ और सस्ता न्याय दिलाने के लिए पहल की गई । इस अधिनियम से उपभोक्ताओं को राहत मिली और उनके चेहरे पर संतोष की चमक आई।

इस अधिनियम के व्यापक प्रसार के लिए भारत सरकार ने पोस्ट ऑफिस के पोस्टकार्ड के जरिए देश के सभी छोटे बड़े डाकघरों में, पोस्टकार्ड उपलब्ध कराए ताकि संदेश देने के साथ ही प्राप्तकर्ता को उपभोक्ता जागरूकता का संदेश भी प्राप्त हो सके ।

भारत सरकार ने टेलीविज़न एवं आकाशवाणी के जरिए उपभोक्ताओं में जागरूकता के लिए विज्ञापन एवं कार्यक्रम चलाए तथा राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं की सहायता के लिए उपभोक्ता हेल्पलाईन भी बनाई गई ।

विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ताओं को सलाह दी जाती है कि वे अपने अधिकारों के लिए जागरूक रहे, वस्तुओं का क्रय करते समय आई.एस.आई/मानक/हॉलमार्क चिन्ह देख कर ले तथा एम.आर.पी एवं एक्सपायरी डेट देखकर वस्तुओं का क्रय करें ।

इन विज्ञापनों के माध्यम से यह बात जरूर पायी गयी है कि आज कुछ उपभोक्ता जाग्रत हुए हैं और उन्होंने न्याय पाने के लिए उपभोक्ता अदालतों की ओर अपना रूख़ किया है। उपभोक्ता न्यायलय मे लंबित केस पर नियमानुसार कार्यवाही हो रही है जो ये संदेश देते हैं कि जागरूक होने के बाद यदि उत्पाद या सेवा मे किसी भी प्रकार की कमी समझ मे आती है तो उपभोक्ता वस्तु में कमी या सेवा में कमी के लिए न्याय पा सकता है ।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत, जिला उपभोक्ता फोरम में 20 लाख रूपए मूल्य तक की शिकायतों की सुनावाई हो सकती है जबकि 20 लाख रूपए मूल्य से उपर तथा 1 करोड़ रूपए के मूल्य तक के उपभोक्ता विवादों की सुनावाई राज्य उपभोक्ता आयोग में की जाती है । इसी के साथ 1 करोड़ के उपर के उपभोक्ता विवादों की सुनवाई राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में की जाती है । यदि किसी निर्णय में उपभोक्ता या विपक्ष संतुष्ट नहीं होता है तो वह उपभोक्ता जिला फोरम के निर्णय के विरूद्ध राज्य आयोग में तथा राज्य आयोग के निर्णय के विरूद्ध राष्ट्रीय आयोग में अपील पेश कर सकता है । उपभोक्ता विवाद का कारण उत्पन्न होने के दो साल के अंदर, उपभोक्ता अदालतों में अपना विवाद दर्ज कर सकता है ।

इस अधिनियम में महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उपभोक्ता उसी जिला न्यायलय में विवाद प्रस्तुत कर सकता है जहॉं विपक्ष पार्टी निवास करती है ।

उपभोक्त न्यायलयों का महत्व एवं क्षेत्र दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है आज उपभोक्ताओं को कय की गई वस्तुओं में त्रुटि पर तथा सेवा में कमी, होने पर कई क्षेत्रों में जैसे की रेल, वायुयान, कुरियर, उपभोक्ता वस्तु, बैंकिंग, इंश्योरेंस, शैक्षणिक संस्थाऐं एवं कोंचिंग इन्स्टीटयूट, सर्विस प्रोवाडर, सी.ए0 वकीलडॉक्टर्स, ब्यूटिशियन, डाईक्लीनर्स, टेलीफोन, चैनल, मोबाईल रेस्टॉरेंट हॉटल, इत्यादि उपभोक्ता न्यायलयों गुहार लगा सकता है ।

जिला उपभोक्ता फोरम में एक अध्यक्ष, जिला जज स्तर का एवं दो सदस्य जज की पीठ होती है राज्य स्तर पर भी एक अध्यक्ष, हाईकोर्ट जज स्तर तथा दो सदस्य होते हैं । राप्ट्रीय स्तर पर एक अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट जज स्तर का तथा पॉंच से छ‘ सदस्यों की पीठ होती है जो अपना निर्णय बहुमत के अनुसार देते हैं । निर्णय में क्रय की गई वस्तुओं को सुधारनें, बदलने के अलावा क्षतिपूर्ति दी जाती है साथ ही उचित वाद व्यय दिलाया जाता है । विपक्ष द्वारा निर्णय का पालन नहीं करने की दशा में दोषी व्यक्ति को तीन साल की सजा एवं 10000 रूपए तक जुर्माना किया जा सकता है । विपक्ष द्वारा उपस्थिति नहीं देने पर उसके विरूद्व वारंट और गिरफ्तारी का भी प्रावधान होता है जिससे कि उपभोक्ता को तुरंत राहत मिल सके । अधिनियम में उपभोक्ता अदालतों में झुठी शिकायत प्रस्तुत करने पर अदालत उसे दंडित कर सकती है ।

अधिनियम में अदालतों को 90 दिनों में निर्णय देने का प्रावधान है परंतु उपभोक्ता विवादों की बढ़ती संख्या के कारण न्यायालयों में निर्णय होने में विलंब हो जाता है ।

आज बहुत से उपभोक्ता इतनी सुविधाओं के होते हुए भी न्याय लेने में आनाकानी करते हैं । वे इस भावना से ग्रसित रहते हैं कि हम न्यायलयों का चक्कर न लगाए और अपनी गाढ़ी कमाई अपने सामने बिना मूल्य का होता हुए देखते रहते है, बाज़ार में भी तरह तरह से छले जाने के प्रलोभन उपलब्ध है जिसकी चपेट में आकर उपभोक्ता अपने आप को ठगा महसूस करता है किंतु अब समय आ गया है कि हम एक जागरूक नागरिक होने का प्रमाण दे और अपने अधिकारों के प्रति सजग रहे तथा दूसरों को सजग रहने की प्रेरणा प्रदान करें ।




  अनुक्रमणिका  
नीलेश राय,
संकाय सदस्य
’’महिला सशक्तिकरण’’ पर सफलता की कहानी

आजीविका मिशन का प्रभाव सबसे अधिक महिला सशक्तिकरण पर हुआ है। आज महिलाऐं समूह के माध्यम से बचत कर आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है, उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हो रहा है, समूह के माध्यम से साक्षर होकर शासन की विभिन्न योजनाओं से परिचित होकर ग्रामीण विकास में वे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है । इस परिप्रेक्ष्य में, मैं ग्राम अमरपुर जनपद कोलारस जिला शिवपुरी का उल्लेख करना चाहूॅगा। इस ग्राम में पांच एस.एच.जी. गठित है एवं समूह के अधिकांश सदस्य अनुसूचित जाति के है, समूह गठन के पूर्व महिलाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी।

जिला गरीबी उन्मूलन इकाई द्वारा ग्राम पर ध्यान केन्द्रित कर गरीब महिलाओं के समूह गठन का कार्य किया गया। डी.पी.आई.पी. टीम द्वारा सतत मॉनीटरिंग एवं मार्गदर्शन के फलस्वरूप समूह की सभी महिलाऐं आज आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर है। सभी का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं मजदूरी होने से डी.पी.आई.पी. के कृषि विशेषज्ञों द्वारा कृषि (टमाटर एवं सरसों की खेती) की, नवीन तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया जिसके फलस्वरूप वे उच्च किस्म की अधिक पैदावार लेकर एवं उसका विक्रय कर आर्थिक दृष्टि से मजबूत हुई है। कुछ सदस्यां द्वारा सिलाई कार्य का प्रशिक्षण लेकर प्रशंसनीय कार्य किया जा रहा है।

आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ समूह की शिक्षित सदस्यो द्वारा अपनी साथी निरक्षर सदस्यों को साक्षर किया गया है ।

समूह द्वारा सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह, महिला साक्षरता एवं स्वच्छता अभियान में योगदान दिया जा रहा है। समूह की महिला सदस्यों द्वारा ग्राम सभा में बढ़-चढकर हिस्सा लिया जाता है यह महिला सशक्तिकरण का सटीक उदाहरण है। ’’आजीविका राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’’ द्वारा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।




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