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मासिक - सत्ताईसवां संस्करण जून, 2017
अनुक्रमणिका हमारा संस्थान
  1. राज्यों के पंचायती राज मंत्रियों का सम्मेलन
  2. अपनी बात ....
  3. प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण में आवास के साथ वृक्षारोपण
  4. अपर मुख्य सचिव महोदय द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंस में दिये गये निर्देश
  5. प्रारंभिक वर्षों की देखभाल (जन्म से तीन वर्ष)
  6. विभिन्न आपदाओं के प्रबंधन में पंचायतों की भूमिका
  7. अनाज बैंक - महिलाओं की सफलता की कहानी

राज्यों के पंचायती राज मंत्रियों का सम्मेलन

दिनांक 27.06.2017 को जहाँनुमा होटल, भोपाल में पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राज्यों के ‘‘पंचायतीराज मंत्रियों का सम्मेलन’’ का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान जी, सम्मेलन की अध्यक्षता भारत सरकार के पंचायती राज, ग्रामीण विकास और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र सिंह तोमर जी, विशिष्ट अतिथि के रूप में केन्द्रीय राज्य मंत्री माननीय श्री पुरूषोत्तम रूपला जी, मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के केबिनेट मंत्री, माननीय श्री गोपाल भार्गव जी एवं मध्यप्रदेश शासन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग राज्य मंत्री माननीय श्री विश्वास सारंग जी, सहित गुजरात, आंध्रप्रदेश, बिहार, अरूणाचल, तेलंगाना, छत्तीसगढ, राजस्थान, आसाम, हरियाणा, तमिलनाडु राज्यों के पंचायत मंत्री शामिल हुए।

इस सम्मेलन में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के केंद्र व राज्य के वरिष्ठ अधिकारीगण तथा पंचायतीराज जनप्रतिनिधिगण भी मौजूद थे।

सम्मेलन में यूनिसेफ द्वारा पंचायती राज मंत्रालय के सहयोग से प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के लिये प्रकाशित पुस्तिका और सतत विकास एवं सहस्त्राब्दि लक्ष्य की प्रशिक्षण हैंडबुक का विमोचन किया गया। विकास के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट काम करने वाली 15 ग्राम पंचायतों के सरपंचों को सम्मानित किया गया।

सम्मेलन में राज्यों के पंचायत राज मंत्रियों ने अपने-अपने राज्यों के अनुभव सुनाये और उत्कृष्ट कार्यों की चर्चा की।

  अनुक्रमणिका  
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण में आवास के साथ वृक्षारोपण
अपनी बात .....

‘‘पहल’’ मासिक ई-न्यूज लेटर का सत्ताईसवां संस्करण का प्रकाशन किया जा रहा है, जो इस साल का मासिक संस्करण के रूप में छटवां संस्करण है।

इस संस्करण में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से संबंधित विभिन्न विषयों पर आलेख को प्रस्तुत किये गये है। इस माह में विभिन्न राज्यों के पंचायतराज मंत्रियों का सम्मेलन भोपाल में आयोजित किया गया जिसमें राज्यों के पंचायतराज मंत्रियों ने अपने-अपने राज्यों के अनुभव सांझा किये एवं उत्कृष्ट कार्यों पर चर्चा की गई।

इसके अतिरिक्त अपर मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश शासन, पंचायत ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा दिये गये निर्देशों को प्रस्तुत किया गया है साथ ही ‘‘विभिन्न आपदाओं के प्रबंधन में पंचायतों की भूमिका’’ पर एक लेख प्रस्तुत किया गया है, जिसके द्वारा आपदा प्रबंधन पर पंचायतों की भूमिका को प्रस्तुत किया गया है तथा महिला एवं बाल विकास विभाग अंतर्गत ‘‘प्रारंभिक वर्षों की देखभाल (जन्म से तीन वर्ष)’’ विषय पर आलेख का प्रस्तुतिकरण किया गया है एवं ‘‘अनाज बैंक-महिला की सफलता की कहानी’’ पर सफलता की कहानी प्रस्तुत की गई है।

हमें पूर्ण भरोसा है कि आपको ‘पहल’ का यह संस्करण अत्यंत रूचिकर लगेगा तथा कई विषयों पर जानकारी प्रदान करेगा क्योंकि इस संस्करण में भी हमने अलग-अलग कई विषयों पर आलेख प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
शुभकामनाओं सहित।

संजय कुमार सराफ
संचालक

प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के लाभार्थियों द्वारा उनके अवास परिसर में अथवा आवासगृह के आसपास वृक्षारोपण के लिए महात्मा गांधी नरेगा के तहत परियोजना स्वीकृत की जावेगी। परियोजना के मापदंड निम्नानुसार निर्धारित किये गए हैः-

  1. पीएमएवाय के वृक्षारोपण हेतु इच्छुक हितग्राही को न्यूनतम 5 फलदार/छायादार वृक्ष (आम, जामुन, नीम, सुरजना/मुनगा, आबला आदि) लगाने होगे।
  2. हितग्राही को पौधे की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड की व्यवस्था करना होगी। ट्री गार्ड बास/कटीले झाड़/कटीले तार/ईट अथवा पत्थर से बनाया जा सकता है।
  3. पौधरोपण के लिए पौधा 2 वर्ष का अर्थात् न्यूनतम एक मीटर उचाई का होना चाहिए।
  4. पौधे की सुरक्षा, नियमित पानी, गुढ़ाई, खाद, दवाई आदि की व्यवस्था करना हितग्राही की जिम्मेदारी होगी।
  5. यदि किसी कारणवश पौधा मृत हो जाए तो हितग्राही को नया पौधा लगाना होगा।
  6. वृक्षारोपण परियोजना की लागत प्रति हितग्राही रु. 5000/- (सामग्री रु. 1560/- एवं मजदूरी 20 दिवस) निर्धारित की जाती है।
  7. एक ग्राम के इच्छुक हितग्राहियों के लिए एक परियोजना संलग्न प्रारुप में बनाकर स्वीकृत की जाए। उदाहरण के लिए यदि ग्राम में पीएमएवाय के 15 इच्छुक हितग्राही हो तो परियोजना लागत रु. 75000/- होगी।
  8. आवासगृह निर्माण पूर्ण होने पर जियो टैग लेते समय पौधे का सत्यापन किया जाए। यथासंभव आवास का जियो टैग फोटो इस तरह लिया जाए कि कुछ पौधे आवास के साथ दिखे।
  9. भुगतान व्यवस्थाः मकान पूर्ण होने पर निम्नानुसार भुगतान नरेगा से किया जाएः-

(अ) सामग्री मद का भुगतान एकमुश्त संबंधित पीएमएवाय हितग्राही को उसके बैंक खाते में किया जाए।

(ब) हितग्राही को 20 दिन की मजदूरी की उपस्थिति देते हुए मजदूरी का भुगतान स्वीकृत किया जाए।

संदर्भ स्त्रोत : विकास आयुक्त कार्यालय ‘‘बी‘‘ बिंग, द्वितीय तल, विध्यांचल भवन का पत्र क्रमांक 6698/22/वि-1/पीएमएवाय/2017 भोपाल दिनाक 25.05.2017




  अनुक्रमणिका  

अपर मुख्य सचिव महोदय द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंस में दिये गये निर्देश, दिनांक 08 जून 2017

1. स्वच्छ भारत मिशन:

1.1 स्वच्छ भारत मिशन के जिला एवं विकासखंड समन्वयकों को SBM के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य न दिया जावे।

1.2 खण्ड स्तरीय समन्वयकों एवं प्रेरकों के लंबित देयकों का निराकरण कर अगली वीडियो कान्फ्रेंस 15 जून के पूर्व भुगतान किया जावे।

1.3 भविष्य मे BC एवं प्रेरकों को भुगतान जनपद पंचायत स्तर से उनके द्वारा किये गए कार्य एवं परिणाम के आधार पर करने की व्यवस्था की जावे।

1.4 प्रत्येक ग्राम में स्वच्छ भारत मिशन की गतिविधियों मे रूचि लेने वाले व्यक्ति को स्वच्छता स्वयंसेवक के लिए 15 जून तक चिन्हित कर 20 जून तक प्रशिक्षित किया जाए। इनकी प्रविष्टि GoI-MIS में 20 जून तक की जाए। प्रशिक्षित स्वयंसेवकों को मिशन की गतिविधियों में निरंतर संलग्न रखा जाए।

1.5 टाटा ट्रस्ट द्वारा जिलों को उपलब्ध कराए गए जिला स्वच्छ भारत प्रेरक को "District Motivator" नाम से सम्बोधित किया जाए। उन्हें दिये गये दायित्व के अतिरिक्त एक ग्राम 15 दिवस में ओडीएफ करने हेतु दिया जाए जिससे वे ग्राम को ओडीएफ करने की पद्धति का व्यवहारिक अनुभव प्राप्त कर लें।

1.6 जिन जिलों में आधारभूत डाटा क्लीनिंग का कार्य शेष है वे VC दिनांक 22.06.2017 के पूर्व डाटा क्लीनिंग का कार्य पूर्ण करें।

1.7 11 जिलों (रायसेन, विदिशा, दतिया, अलीराजपुर, झाबुआ, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, सीधी, शाजापुर, खण्डवा एवं रीवा) ने 30 नवम्बर 2017 के पूर्व जिले को ओडीएफ घोषित करने का लक्ष्य रखा।

1.8 08 जिलों (श्योपुर, अशोकनगर, कटनी, बैतूल, सागर, अनूपपुर, उमरिया, एवं देवास) ने 28 फरवरी 2018 के पूर्व जिले को ओडीएफ घोषित करने का लक्ष्य रखा।

1.9 सभी जिले 30 जून तक FTO व्यवस्था लागू होने से पूर्व निर्मित सभी शौचालयों के Geo-Tagged फोटो अपलोड करें।

1.10 पन्ना जिले को पूर्णकालिक जिला समन्वयक उपलब्ध कराएं।

1.11 अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ़, उमरिया जिले की करकेली, देवास जिले की बागली, मुरैना जिले की पहाड़गढ़, अशोकनगर जिले की अशोकनगर तथा विदिशा जिले की गंजबासौदा जनपद के लिए एक-एक अतिरिक्त ब्लाक समन्वयक की स्वीकृति दी गई।

2. प्रधानमंत्री आवास योजना:

2.1 झाबुआ, पन्ना, सतना एवं शहडोल शेष स्वीकृतियाँ पूर्ण करें।

2.2 अपात्रों को जारी स्वीकृतियाँ निरस्त कर तथा आवास सॉफ्ट से delete करें। अपात्र लाभार्थियों से प्रथम किश्त वापस ली जाए।

2.3 जिन हितग्राहियों ने प्रथम किश्त मिलने के बावजूद आवास निर्माण प्रारम्भ नहीं किया है उन्हे 10 दिवस में कार्य प्रारम्भ करने हेतु नोटिस दें। यदि हितग्राही निर्माण प्रारम्भ नहीं करे तो स्वीकृति निरस्त कर राशि वसूली करें अन्यथा अमानत में खयानत का आपराधिक प्रकरण दर्ज कराएं।

2.4 द्वितीय किश्त देने में विलम्ब की CEO, ZP एवं CEO, JP मॉनिटर करें।

2.5 ग्रामोदय अभियान के दौरान प्राप्त आवेदनों का परीक्षण कर पात्रों का भौतिक सत्यापन कर SECC-2011 में पंचायत दर्पण पर प्रविष्टि की जाए।

3. पंचपरमेश्वर योजना:

सीसी सड़क- CC सड़क व पक्की नाली निर्माण की प्रगति की समीक्षा करें। ग्राम पंचायत के खातों में पर्याप्त राशि उपलब्ध है। जहाँ कार्य प्रारम्भ नहीं हुए हों वहाँ प्रारम्भ कराएं।

4. महात्मा गांधी नरेगा:

4.1 मटेरियल पेमेंट का लंबित भुगतान अगली VC तक सुनिश्चित करें।

4.2 Delay payment के प्रकरणों की जनपर वार समीक्षा की जाए। अगली VC तक Delay payment जिन जनपदों में 30% या ज्यादा और जिलों में 20% या ज्यादा होंगे उनके CEO के विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी।




  अनुक्रमणिका  

प्रारंभिक वर्षों की देखभाल (जन्म से तीन वर्ष)

मानव जीवन के प्रारंभिक वर्षो की देखभाल जीवित रहने, वृध्दि एवं विकास के लिये एक एकीकृत प्रयास है । जो बाल मैत्रीय, परिवार केन्द्रित तथा समुदाय पर आधारित है। यह अपने सही दायरों में रह कर निर्धारित करता है कि इस अवस्था में बच्चों को जीवित रहने, वृध्दि एवं विकास के लिये सही देखभाल हो क्योंकि आज का बच्चा कल का भावी नागरिक होगा हमें बच्चे के विकास के लिये समग्रता में प्रयास करने होंगे इसलिये आई.सी.डी.एस. में बालक को केन्द्र बिन्दु बनाकर 6 सेवाओं के द्वारा उसकी जीवंतता वृध्दि एवं विकास को सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे है । इन 6 सेवाओं में से एक महत्वपूर्ण सेवा शाला पूर्व शिक्षा को इस विषय की पूर्ति के लिये आधार बनाया है परन्तु इसमें सबसे बड़ी समस्या है कि इस सेवा का लाभार्थी 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चे हैं जबकि यह जन्म से ही प्रारम्भ हो जाता है परन्तु हम बच्चे की मांॅ या उसकी देखभाल कर रहे लोगों से इस विषय पर कोई चर्चा नहीं करते हम इन्तजार करते हैं कि जब बच्चा 3 साल का होगा और शाला पूर्व अनौपचारिक शिक्षा के लिये जब वो आंॅगनवाड़ी में आयेगा तब कार्यकर्ता उसके विकास का कार्य प्रारंभ करेगी । इसी लिये वो 3 साल से पहले बच्चे की देख रेख करने वालों से बच्चे के विकास को लेकर किसी तरह की चर्चा नहीं करती फलस्वरूप वो अपने पारिवारिक वातावरण से बहुत कुछ सीख कर आता है जिन संकल्पनाओं के विकास की बात वो आंॅगनवाड़ी में करती है वो उसके लिये नये नहीं है । वो नये अनुभव चाहता है और हम उसे वो सब नहीं दे पाते फलस्वरूप उसे कोई दिशा नहीं मिल पाती और हम उसके विकास की संभावनाये विकसित नहीं कर पाते। क्योंकि अब हम बच्चे की तुलना मट्टी के लोधे से नहीं कर सकते जब हम कहते थे कि बच्चे को जो चाहे आकार दिया जा सकता है आज हम उसे एक छोटे पौधे की संज्ञा देनी होगी जिसकी छोटी-छोंटी शाखाएंॅ अपनी-अपनी यात्रा के लिये तैयार खड़ी है ताकि कोई उसकी क्षमताओं के अनुसार उसे विकसित करने का वातावरण दे । क्योंकि वह अपनी क्षमताएंॅ लेकर पैदा हुआ है हमें उसे पहचानना होगा जिसके आधार पर निश्चय ही प्रत्येक बच्चे की विकास की संभावना अलग-अलग होंगी ।

डारथी लो नोल्ट ने बच्चों के बारे में एक बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है जो कि माता पिता के लिये बहुत से संदेश देती है जिन्हें उन्हें अपने दिमाग में रखना चाहिये ताकि वे अपने बच्चे के वृध्दि एवं विकास के लिये एक अच्छा मंच दे सकें ।

बच्चे वही सीखते हैं जो जीते है -

अगर बच्चा आलोचना के माहौल में रहता है तो वह निन्दा करना सीखता है

अगर बच्चा प्रशंसा के माहौल में रहता है तो वह तारीफ करना सीखता है

अगर बच्चा सहनशीलता के माहौल में रहता है तो वह धैर्य रखना सीखता है

अगर बच्चा बेहूदे और खिल्ली उड़ाने वाले माहौल में रहता है तो वह संकोच करना सीखता है

अगर बच्चा प्रोत्साहन के माहौल में रहता है तो वह आत्म विश्वास करना सीखता है

अगर बच्चा शर्मिंदगी के महौल में रहता है तो वह खुद को दोषी मानना सीखता है

अगर बच्चा समर्थन के माहौल में रहता है तो वह खुद को पसंद करना सीखता है

अगर बच्चा न्याय संगत माहौल में रहता है तो वह इंसाफ करना सीखता है

अगर बच्चा सुरक्षा के माहौल में रहता है तो वह भरोसा करना सीखता है

अगर बच्चा सहमति और दोस्ती के माहौल में रहता है वह दुनिया में प्यार ढ़ंॅूढ़ लेना सीखता है

सर्वे के आधार पर प्राप्त साक्ष्य -3

  • लगभग 50 प्रतिशत बौध्दिक विकास गर्भधारण से 4 वर्ष की अवस्था तक होता है।
  • 18 वर्ष की उम्र तक प्राप्त भाषा का ज्ञान लगभग 50 प्रतिशत प्रारंभिक 8 वर्ष की आयु तक प्राप्त किया जा चुका होता है।

बाल विकास एवं सीखने के आधारभूत सिध्दान्त-

ये तथ्य Piaget, Vygotsky,Erikson के द्वारा किये गये कार्य पर आधारित है।

  • जब बालक की शारीरिक आवश्यकताएं पूरी हो जाती है और वे अपने आप को मनोवैज्ञानिक स्तर पर सुरक्षित महसूस करते है तब वे बेहतर सीखते हैं।
  • बालक ज्ञान को समग्रता में लेता है।
  • बालक अन्य बच्चों एवं प्रोढ़ों के साथ परस्पर संबंधों के द्वारा सीखता है।
  • बच्चे खेल के द्वारा सीखते हैं।
  • बच्चों की रूचि एवं कुछ जानने की आवश्यकता सीखने को प्रेरित करती है।
  • प्रत्येक बच्चे का विकास का अपना व्यक्तिगत पैटर्न होता है और उसी के अनुसार उसका सीखने का अपना तरीका होता है जिसमें उसके अपने परिवार के अनुभव एवं संस्कृति का भी प्रभाव पड़ता है।

बच्चों का प्रारंभिक वर्षों में विकास बहुत तेजी से होता है जिसमें बच्चा वातावरण के साथ सामंजस्य बिठाने एवं अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने का तरीका सीखता है । बच्चा पालन पोषण की आरम्भिक आवस्था में जो अनुभव लेता है वही उसके आगे के जीवन में सीखने की प्रक्रिया की नींव होती है । अतः आरंभ में बच्चा जिज्ञासा वश किसी चीज को जानना चाहता है यह आवश्यकता उसे सीखने की प्रक्रिया से जोड़ देती है । नवजात शिशु जो कि सीमित क्षमताओं के साथ जन्म लेता है, वह आन्तरिक तथा बाहरी विकास एवं प्रोत्साहन के फलस्वरूप शारीरिक, मानसिक सामाजिक क्रियाकलापों में आपने आपको सक्षम पाता है।

बच्चे के विकास की दृष्टि से ये प्रारंभिक वर्ष अत्याधिक महत्वपूर्ण होते है । इन वर्षों में बच्चों के उचित विकास के लिए उत्साहपूर्ण और अच्छे वातावरण की आवश्यकता होती है । इसका तात्पर्य है हि मंहगे खिलौने, सुन्दर कपड़ें, सुन्दर मकान न होकर बच्चे व अभिभावक के मध्य अच्छा सह संबंध एवं अभिभवकीय आत्म प्रेरणा से है । यही कारण है कि जहांॅ बच्चे को अच्छी कहानी सुनने, अलग-अलग साधनों से खेलने, अवलोकन करने व स्वयं को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है उसी घर का वातावरण विकास की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है जिन घरों में बच्चे की क्षमता का आकलन कर उसके लिए आशा निर्धारित की जाती है । वही सबसे अच्छा उत्प्रेरक वातावरण कहलाता है।

प्रारंभ के तीन वर्षों में मस्तिष्क का विकास बहुत तीव्र गति से होता है -

जन्म के समय बच्चे के शरीर में लगभग एक अरब कोशिकायें होती है मगर ये जन्म के बाद ही क्रियाशील होती है । जैसे-जैसे मस्तिष्क का विकास होता है वैसे ही कोशिकाएंॅ क्रियाशील होती जाती हैं। स्नायु कोशिकाएंॅ महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । दो स्नायु कोशिका के बीच में किसी सूचना का आदान प्रदान रासायनिक द्रव्यों के माध्यम से होता है जिससे कि वो आपस में संबंध स्थापित करती है जैसे विधुत का संचार। इन कोषिकाओं को डेन्ड्राइडस का जाल बाहरी उत्प्रेरणा पर निर्भर करता है तथा सषक्त होता है यू ंतो इन्द्रियों में संकेत जन्म से ही क्रियाशील होते है लेकिन इसका सशक्तिकरण बाहरी रूप से जन्म के बाद मिली उत्प्रेरणा पर निर्भर करता है।

विभिन्न अवस्थाओं में मस्तिष्क का विकास-

शिशु के जन्म होते ही कोशिकायें तेजी से दूसरी कोशिकाओं से संबंध स्थापित करती हैं । यइ प्रक्रिया पहले तीन साल की उम्र में अत्यधिक तेजी से होती है वातावरण के सम्पर्क में आने से कोशिकाओं में संचालन बढ़ता है । जिन कोशिकाओं में बार-बार संचालन हो रहा है वे ही आगे बढ़ती है और व्यक्तिगत रूप से सक्षम होती है । जिन बच्चों को शुरूआत से ही सीखने के अवसर नहीं मिल पाते है उनके बाद में सीखने में अधिक समय लगता है तथा कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

नींव (फाउन्डेशन) के वर्ष है-

प्रारंम्भिक बाल्यावस्था को किसी बाल के व्यक्तित्व के विकास की नींव भरने का समय कहा जाता है। इसी दौरान संकल्पनाओं को समझना बालक शुरू करता है यहांॅ बालक के विभिन्न विकास एवं संकल्पनाओं के संन्दर्भ में कुछ तथ्य प्रस्तुत है जो हमें दिशा देते हैं कि बच्चे की किस आयु में विभिन्न विकास एवं संकल्पनाओ का संकट काल है अर्थात् इस समय बच्चे पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

  • भावनात्मक संतुलन - इसकी अवधि 8 माह से 2 वर्ष तक रहती है।
  • आदते और स्वभाव - इसकी अवधि 3 माह से 2 वर्ष तक रहती है।
  • भाषा का विकास - इसकी अवधि 6 माह से 4 वर्ष तक रहती है।
  • संज्ञानात्मक विकास -इसकी अवधि 20 माह से 6 वर्ष तक रहती है।
  • बौध्दिक विकास -इसकी अवधि 4 साल सें 6 वर्ष तक रहती है।

(शेष भाग अगले अंक में...................)




  अनुक्रमणिका  
श्रीमती अर्चना कुलश्रेष्ठ,
संकाय सदस्य
विभिन्न आपदाओं के प्रबंधन में पंचायतों की भूमिका
बाढ़ की समस्या से कैसे निपटें ?

बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में पंचायत अपने आसपास की ऊंची जगहों की पहचान कर सकती है जो कि बाढ़ आने पर वहां पर पनाह ली जा सके। बाढ़ के पानी को ग्रामीण आवास में घुसने से रोकने का प्रबंध कर सकती है। बिजली की सप्लाई को बंद करवा सकती है।

बाढ़ से निपटने के बारे में लोगों को जागरूक कर सकती है। जहां पर बाढ़ आने का खतरा हो वहां पर पंचायत बाढ़ राहत शैल्टर बना सकती है और उन में आवश्यक जीवनयापन की सामग्री संरक्षित की जा सकती है। पंचायत बाढ़ संभावित क्षेत्र में नीचे या गहरी भूमि पर आवास निर्माण को रोक सकती है।

भूकंप आने पर क्या किया जावे ?

जिस क्षेत्र में भूकंप आने की संभावना है वहां पर भू-वैज्ञानिकों के बुलाकर इमारत बनाने की तकलीफों व भूमि के कमजोर भागों को मजबूत बनाने संबंधी कार्य पंचायतें कर सकती हैं। भवन निर्माण के साथ-साथ नजदीक खुली जगह भी रखी जा सकती है। जब भूकंप आए तो लोग घरों से बाहर खुली जगह में आसानी से निकल सकें। इस कार्य में पंचायतें भूकंपरोधी घर निर्माण कार्यों में लगे तकनीकी संस्थाओं से अपने क्षेत्र के भवन निर्माण नक्शे का प्रारूप बनवा सकती हैं।

भूकम्प अचानक आते हैं। लोगों की मदद के लिए सेवादल, डॉक्टर आदि को तत्काल घटनास्थल की ओर भेजने का प्रबन्ध करे। फंसे हुए लोगों के लिए राहत, भोजन, पानी, चिकित्सा का प्रबन्ध करना चाहिए।

आग लगने पर क्या किया जावे ?

कभी-कभी जलती हुई बीड़ी-सिगरेट के ठूंठ हर कहीं डालने, पटाखे छोड़ने, गैस सिलेण्डर या स्टोव फटने तथा अंगीठी या चूल्हे को पूरी तरह नहीं बुझाने से आग लग जाती है। इससे खेत, घर तथा इकट्ठी की गई घास के ढेर जलकर स्वाहा हो जाते हैं। जल्दी से आग नहीं बुझा पाने के कारण यह आग बस्ती तथा जंगलों में फैल जाती है। इससे पशु, पक्षी तथा जन-धन की काफी हानि होती है।

आग लगने के प्रकोप से बचने के लिए पंचायतें अग्निशमन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों, कार्यालयों के संपर्क सूत्रों को सार्वजनिक स्थानों पर लिखवा व चिपकवा सकती हैं। ज्यों ही कोई इस प्रकार की घटना हो तो जल्द से जल्द आग बुझाने का प्रबंध किया जा सके। पंचायतें आग बुझाने वाले यंत्रों को भी खरीद सकती हैं। घरेलू आग के बारे में उपयुक्त कार्यदलों से संपर्क कर गांव में संगोष्ठी व कार्यशाला आयोजित कर सकती हैं। रसोई गैस की दुर्घटना से बचने के लिए पंचायतें रसोई गैस एजेंसियों से संपर्क करके दुर्घटना से बचने के बारे में गांव में इच्छुक महिलाओं को प्रशिक्षण दिल वाकर एक ग्रामीण कार्यदल का निर्माण कर सकती हैं और समय-समय पर इस कार्यदल द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने का कार्य कर सकती हैं। गांव में विद्यालयों, अस्पतालों व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर लगे अग्निशामक यंत्रों को समय-समय पर पंचायत जांच कर सकती है और उनके प्रयोग करने के बारे में प्रशिक्षित व्यक्तियों से आमजन को जागरूक कर सकती है।

सरकारी कार्यालयों, बसों एवं सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट-बीड़ी पीने पर कानूनन रोक है। इसका सख्ती से पालन कराए। लोगों को आग से सुरक्षा के उपाय सिखाने चाहिए। अग्निशमन यंत्र एवं आग बुझाने की सामग्री, बाल्टियां, कुदाली, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स आदि भी पंचायत में उपलब्ध होने चाहिए।

रोग फैलने पर क्या किया जावे ?

कभी-कभी मलेरिया, प्लेग, हैजा, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां फैल जाती हैं। आवागमन के साधनों की सुविधा बढ़ने से ये बीमारियां तेज गति से फैलती हैं। यदि अपने क्षेत्र में कई लोग एक साथ बीमार हो तो शीघ्रता से निकट के अस्पताल तथा जिला मुख्यालय के चिकित्सा अधिकारियों को सूचित करना चाहिए। बचाव के उपाय भी करने चाहिए। रोग अधिक न फैले इस हेतु ब्लीचिंग पाउडर, दवा का वितरण करना चाहिए। पानी उबालकर पीना तथा सार्वजनिक स्थानों की सफाई आदि के बारे में ध्यान रखना चाहिए।

ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में फैलने वाली महामारी व बीमारी से बचाव का प्रबंध पहले ही कर सकती है। ग्रामीण क्षेत्र में पानी का ठहराव न होने दें, ग्रामीण आवासीय क्षेत्र के बीच से तालाब आदि को हटवाकर, समय-समय पर मच्छर पनपने पर दवाओं का प्रबंध करके, सुनियोजित समग्र सफाई अभियान चलाकर, खुले में शौच को बंद करके, दस्त, मलेरिया, हैजा आदि की दवाओं को उपलब्ध करवाकर, स्वास्थ्य केंद्रों पर कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित करके पंचायतें अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं।

जानवरों की बीमारी

कभी-कभी जानवरों में कई प्रकार की बीमारियां फैल जाती हैं- जैसे खुरपका, मुंहपका आदि। इन बीमारियों के सम्बन्ध में सम्बन्धित जिला पशु चिकित्सालय में सूचना भिजवा देनी चाहिए। रोगग्रस्त मृत पशुओं से बीमारी फैलने का डर हो तो उन्हें जला डालना चाहिए अथवा जमीन में गाड़ देना चाहिए।

फसल की बीमारियां

फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों के प्रकोप से बीमारियाँ फैल जाती हैं। इन पर शीघ्र ही कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करवाना चाहिए एवं टिड्डी दल के आने पर धुआँ करना, ढोल बजाना आदि उपाय करने चाहिए।

सड़क दुर्घटनाओं के समय क्या किया जावे ?

राजमार्गों एवं गाँव की सड़कों पर आए दिन दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। इससे कई लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है। गलत दिशा में चलने, ओवर-टेक करने, नशे व लापरवाही से तेज वाहन चलाने, खराब सड़कों, रोड संकेतकों एवं गति अवरोधों के नहीं होने, वाहन में तकनीकी खराबी होने आदि से सड़क दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। पंचायतों को चाहिए कि वे अपने पंचायत क्षेत्र से गुजरने वाले मार्गों की मरम्मत कराए एवं सुरक्षा की दृष्टि से देखरेख रखें।

लोगों को सड़क पर चलने तथा वाहन चलाने के नियमों का ज्ञान कराना चाहिए। सड़क, मार्गों एवं मोड़ों पर आवश्यक संकेतक लगाने चाहिए। सड़कें चौड़ी करवाना, समय-समय पर मरम्मत करवाना, बाईपास बनवाने, सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था, रेलवे क्रॉसिंग, नदियों पर पुल आदि बनवाने चाहिए।

मकान गिरने पर क्या किया जावे ?

प्रायः तकनीकी दृष्टि से मकान ठीक से नहीं बनवाए जाते हैं तथा मरम्मत भी समय पर नहीं करवाते हैं। इससे मकान की छतें, दीवारें, बरामदे कमजोर होकर गिर जाते हैं। पंचायत को चाहिए कि वर्षा से पूर्व ही ऐसे जर्जर मकानों, स्कूलों, सामुदायिक वनों की सूची बना लें। सम्बन्धित व्यक्ति को उन्हें दुरुस्त करने हेतु नोटिस दे दें। ध्यान न देने पर पंचायत ऐसे भवन को गिरवा कर सम्बन्धित से खर्च वसूल करें।

उद्योगों से जुड़ी दुर्घटनाएं

आटा चक्की, आरा मशीन, तेल घाणी, कृषि यंत्रों आदि से दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। इन दुर्घटनाओं में उंगलियां, हाथ, पैर या शरीर के भाग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

कीटनाशक दवाओं का दुष्प्रभाव

सब्जियों तथा फसलों पर कीटनाशी दवाओं के दुष्प्रभाव से भी कई लोग बीमार हो जाते हैं। कीटनाशक दवाओं के प्रति सावधानी रखने की जानकारी दी जानी चाहिए।

बाढ़, सूखा एवं अकाल

कभी-कभी इतनी तेज वर्षा होती है कि तालाब टूट जाते हैं, नदियों-नालों में उफान आ जाता है, फसलें खराब हो जाती हैं, आवागमन के रास्ते टूट जाते हैं। इनकी समय पर मरम्मत कराते रहें। कभी-कभी लगातार तीन-चार वर्ष तक वर्षा नहीं होती तथा अकाल पड़ते रहते हैं। लोग भूखे रहने को मजबूर हो जाते हैं। लोग मजदूरी को तरसते हैं। पशु पलायन कर जाते हैं। भोजन, चारा, पानी एवं रोजगार की व्यवस्था करना पंचायत की जिम्मेदारी है।

बिजली गिरना

प्रभावित लोगों एवं भवनों की मदद का प्रबन्ध करना चाहिए।

हिंसक जानवरों का उत्पात

गाँव में हिंसक जानवर घुस आते हैं तथा मवेशियों व बच्चों को उठा ले जाते हैं। वन विभाग को सूचित कर इन्हें पकड़वाया जाना चाहिए।

दंगा-फसाद या झगड़ा

अफवाहें फैलने, गलतफहमी होने या राजनैतिक विद्वेष से, धार्मिक या उन्माद पर लोगों के अड़ियल रूख के कारण दंगे हो जाते हैं। इन्हें राजनैतिक रंग दे दिया जाता है। कभी-कभी पारिवारिक झगड़े हो जाते हैं। ये झगड़े कभी-कभी वीभत्स रूप धारण कर लेते हैं। पत्थरबाजी, लूटपाट, आग लगाना एवं छुरेबाजी से कई जानें चली जाती हैं। कभी-कभी झूठी अफवाहें फैलाई जाती हैं। इनकी जानकारियां देकर सच्ची बात से लोगों को अवगत करवाना चाहिए। अफवाह फैलाने वाले को दण्डित कराएं। दंगे की आशंका होते ही पंचायत को चाहिए कि दोनों पक्षों में समझौता कराने का प्रयत्न करें। यदि बात अधिक बिगड़ती हो तो प्रशासन व पुलिस को तुरन्त सूचित करना चाहिए।

अन्धविश्वास

कई प्रकार के अन्धविश्वास फैलाए जाते हैं। महिलाओं को भूत, प्रेत, डायन समझकर मार दिया जाता है, बालकों की बलि चढ़ाई जाती है, जंगल जला दिए जाते हैं। पंचायतों का कर्तव्य है कि लोगों में फैले ऐसे अन्धविश्वासों को दूर करें।

ठगों, चोर व डाकुओं का आतंक

नकली डॉक्टरों, नकली वस्तुएं व दवा बेचने वालों, जादूगरों, साधु-सन्यासियों के वेष में ठग-उचक्के आते हैं तथा भोले-भाले ग्रामीणों को ठग कर चले जाते हैं। कभी-कभी चोर, लुटेरे व जेबकतरों के दल आते हैं तथा अप्रिय वारदातें करके भाग जाते हैं। लोगों को ऐसे व्यक्तियों से सावधान रहने की हिदायत दी जाए तथा पकड़ में आने पर पुलिस के हवाले कर देना चाहिए।

चोट लगने पर

पेड़ों अथवा मकानों से नीचे गिरने, कुओं अथवा गड्ढों में गिरने, करण्ट लगने, जहरीले व हिंसक जानवरों के काटने से लोग घायल हो जाते हैं। उनकी तत्काल सहायता की जानी चाहिए।




  अनुक्रमणिका  
डॉ. संजय कुमार राजपूत,
संकाय सदस्य
अनाज बैंक - महिलाओं की सफलता की कहानी

ग्राम सैमरालहरिया जनपद पंचायत राहतगढ जिला सागर (म0प्र0) अन्तर्गत एक ग्राम पंचायत है जिसमें सभी वर्ग के लोगों में सोहार्द एवं भाईचारा है।

समरस्ता का एक अच्छा उदाहरण है। गत वर्ष माह नवम्बर 2016 में श्रीमती अहिल्या राजपूत प्रेरक ने अनुसूचित जनजाति के मोहल्ले में जहां 50 परिवार रहते थे जिनके जीवकोपार्जन का जरिया मजदूरी कार्य है नोटबंन्दी के समय 50 परिवारों को नगद रूपये न मिल पाने के कारण उन्हे प्रेरक द्वारा 30 महिलाओं की बैठक बुलाकर समझाया गया कि आप लोग मिलकर अपनी स्वयं की वचत से एक से दो किलो गेहूं अनाज हर माह जमा करवाये और उसका हिसाब किताब रखे और जिसको जरूरत हो उसको मांग के हिसाब से अनाज दे। सभी परिवारों में यह स्वीकार किया अपना अनाज बैंक बना लिया और आज महिलायें वह अनाज बैंक स्वयं चला रही है अनाज बैंक की महिलाओं में से श्रीमती लक्ष्मी, श्रीमती आशारानी एवं श्रीमती रामदुलारी इन सभी महिलाओं ने जरूरत के समय अनाज बैंक से

अनाज लिया और नोट बंन्दी के समय भोजन हेतु अनाज क्रय करने की समस्या को हल किया। उन्होंने अपने बैंक से कन्या की शादी, बीमारी एवं अन्य संस्कारों के लिये अनाज लिया और अपने बनाये नियमानुसार मय ब्याज के अनाज लौटाया। श्रीमती अहिल्या राजपूत से चर्चा की गई उन्होंने बताया की महिलाओं ने सर्व सहमति से 50 किलो अनाज 05 किलो अनाज अतिरिक्त ब्याज के रूप में देती है इससे अनाज बैंक की भण्डारण क्षमता बढ़ी और समय पर अधिक इससे उत्साहित होकर ग्राम सैमरालहरिया में समूह की जिसमें अनुसूचित जनजाति समाज की सभी महिला सदस्यों ने मिलकर अनाज बैंक बनाने हेतु मन बनाया। इस अनाज बैंक बनाने से स्वरोजगार के साथ साथ उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आया एवं पलायन में भी रोक लगी इस अनाज बैंक की सफलता की कहानी स्वयं में महिलाओं के सशक्तिकरण का अच्छा नमूना है ।




  अनुक्रमणिका  
आर.पी. खरे,
संकाय सदस्य
प्रकाशन समिति

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अपर मुख्य सचिव, म.प्र.शासन
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग

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