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मासिक - अठ्ठाईसवां संस्करण | जुलाई, 2017 |
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अनुक्रमणिका | हमारा संस्थान | |||||||||||||
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शौर्य दल के प्रशिक्षण हेतु रिर्सोस दल के प्रशिक्षण का आयोजन | ||||||||||||||
महात्मा गांधी राज्य ग्रमीण विकास एवं पंचायतराज संस्थान में दिनांक 11 जुलाई से 13 जुलाई 2017 तक शौर्यदल के रिर्सोस पर्सन के लिये प्रशिक्षण का आयोजन किया गया इसमें कुल 24 प्रतिभागियों ने भाग लिया। ये रिर्सोस ग्रुप शौर्य दल के मास्टर प्रशिक्षकों के लिये प्रशिक्षण का आयोजन करेगा ताकि रिर्सोस ग्रुप प्रशिक्षण की विषय वस्तु एवं विधि को समझ सके एवं भविष्य में होने वाले प्रशिक्षण का आयोजन कर सके। प्रशिक्षण में प्रतिभागियो को प्रशिक्षण के उददेश्य से परिचित कराया गया तत्पश्चात शौर्यदल के प्रत्येक आंगनवाड़ी के साथ गठन एवं विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया। |
आंगनवाड़ी केन्द्र की सेवाओं को सुंदृढीकरण में शौर्यदल की भूमिका पर विस्तार से निम्न विन्दुओ पर चर्चा की गई।
समूह में प्रतिभागियो ने भ्रमण के दौरान प्राप्त अनुभवो पर चर्चा की एवं महिला हिंसा एवं बालको के प्रति होने वाली हिंसा के प्रति जन जागरूकता की आवश्यकता को बताते हुये महिला एवं बाल विकास विभाग की विभिन्न अभियान एवं योजनाओं पर चर्चा की। इस प्रशिक्षण सत्र का समन्वय श्रीमती अर्चना कुलश्रेष्ठ द्वारा किया गया।
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विकास में सामुदायिक सहभागिता | ||||||||||||||
विकास की निरंतरता मानव समृद्धि का आधार है । गहन अध्ययन शोधों से यह बात सिद्ध हुई है कि लोगोंं से सम्पर्कता का अभाव तथा मुख्य धारा से अलग-थलग पड़े रहना ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त निर्धनता का प्रमुख कारण है । सुविधाओं की पहुंच से आर्थिक अवसर खुलते हैं लोगों की गतिशीलता सुगम बनती है तथा ग्रामीणों तक आधारभूत जन सुविधा की पहुंच संभव होती हैं । ग्रामीण गरीबों के लिये अजीविका एक सबसे बड़ी चुनौती है। अवसरों के अभाव में हम अपने प्रदेश/देश की आधुनिक अर्थ व्यवस्था की परिकल्पना नहीं कर सकते। रोजगार के अवसर पैदा करना और गरीबी हटाना एक दूसरे के पूरक है क्योंकि रोजगार में वृद्धि गरीबी में कमी लाने का निर्धारण करती है। रोजगार का अर्थ केवल कार्य में लगना नहीं हैं बल्कि इसका अर्थ काम से लाभ व आय या पारिश्रमिक अर्जित करना है। जो लोगों को न्यूनतम स्वीकार्य जीवन स्तर जीने के लिये बुनियादी आवश्यकताएं मुहैया करायें। इसमें कोई शंका नहीं है कि हमारे सामने गरीबी एक मुख्य चुनौती हैं और हम सुदृढ़ बनना चाहने के साथ विकसित देशों से होड़ करना चाहते हें । इसके लिये जरूरी है कि हमें अपनी विकास की नीतियों में इसे प्राथमिकता देनी होगी । हमारी लगभग तीन चौथाई आबादी आज भी गांवों में रहती है और इसका मतलब है कि अधिकतर निर्धन गांवों में ही रहते हैं। गांधी जी कहा करते थे कि - भारत गांवों में बसता है और गांवों के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता। सरकार के द्वारा यह समस्या से निपटने के लिये कई बार कई कार्यक्रमों के माध्यम से उपाय भी किये गये हैं जिसमें दो प्रकार के कार्यक्रम हैं - स्वरोजगार के लिये एवं रोजगार के लिये हैं। |
योजनाओं के क्रियान्वयन में समस्यायें उत्पन्न हुई हैं परिणामस्वरुप चुनौतियां जो सामने आई :-
इनके अलावा और भी गंभीर चुनौतियां हैं जो विकास में बाधा है :-
सभी चुनौतियां में अंतिम दो चुनौतियां मुख्य रूप से बाधक हैं जिसे अब रास्ते से हटाने की आवष्यकता है । अब समय हैं कि हम इन चुनौतियों का सामना करने के लिये तैयार रहें क्योंकि आज हम सामुदायिक सहभागिता की तरफ बढ रहें हैं। (शेष भाग अगले अंक में.....)
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प्रारंभिक वर्षों की देखभाल (जन्म से तीन वर्ष) | ||||||||||||||
उपरोक्तानुसार दर्शाया गया समय बच्चे के लिये संकट का काल कहलाता है । इसी समय इस विकास से संबंधित गतिविधि के लिये बच्चे को स्टीमूलेट करना चाहिये ताकि वह संबंधित क्रमिक विकास को प्राप्त कर सके। परंतु इस अवधि में बच्चा आंगनबाड़ी में मात्र पोषाहार का हितग्राही होता है अनोपचारिक शिक्षा सेवा का हितग्राही न होने के कारण कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी नहीं समझती है और न ही वो मां से चर्चा करती है जिससे वो जागरूक हो सके और बच्चे पर ध्यान दे। जबकि आई.सी.डी.एस.का मुख्य केन्द्र बच्चा है। और यही कारण है कि जब बच्चा गर्भ में आता है तभी से उसके जीवन्तता वृध्दि एवं विकास के लिए हमारे प्रयास प्रारम्भ हो जाने चाहिये । और इसके लिये पैदा होते से ही उसे स्टीमूलेषन की आवश्यकता होती है। जो कि उसके विकास के लिये आवश्यक है। क्योंकि बच्चा पैदा होते से उसकी ज्ञानेन्द्रियांॅ क्रिया शील हो जाती है। इसलिये वो आस पास के वातावरण से सीखता रहता है, ये ही वह समय है जबकि हम उसे सही मायने में मदद कर सकते है दूसरे शब्दों में हम कहें कि इस समय उसके व्यक्तित्व के विकास के लिये नींव भरने का समय है जिसके लिये बच्चे के पालक एवं देखभाल करने वाले को जागरूक होना चाहिये। जब हम किसी बालक की जीवंतता सुनिश्चित कर लेते हैं अर्थात् तीन बातें उसके विकास के लिये जरूरी हो जाती हैं।
उक्त तीनो आवष्यकताओं के पूरा होने पर ही बालक का सर्वांगीण विकास होता है यहांॅं ध्यान देने वाली बात है कि हम आई.सी.डी.एस. में पूरक पोषाहार के द्वारा तथा स्वास्थ्य सेवाओं के द्वारा उपरोक्त दो आवश्यकताओं को तो हम पूरा कर रहे हैं। परन्तु बालक के सही मायनो में सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये हम मांॅ से बातचीत नहीं कर रहे है तथा बालक भी हमारे पास 3 साल पूरे करने के बाद आ रहा है । इन परिस्थितियों में हमें बालक को सही मायनो में सामाजिक वातावरण देने के लिये माता को ही प्रेरित करना होगा ताकि वह एक स्वस्थ्य नागरिक बन समाज व समुदाय के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पहचानते हुये अपना सकारात्मक सहयोग प्रदान कर सकें तथा देश के निर्माण में भागीदार हो सके। बच्चों की आवश्यकताएंॅ पहचानने व पूरा करने में माता पिता की भूमिका - प्रत्येक बच्चा अपने आप में विशिष्ट होंता है किन्ही भी दो बच्चों का विकास एक जैसा नहीं होता । अतः माता-पिता को अपने बच्चे की आवश्यकताओं को पहचानकर उन्हें उत्प्रेरित वातावरण देने का प्रयास करना चाहिये।
समझ के दायरे - आज संयुक्त परिवार के विघटन का सबसे ज्यादा प्रभाव जन्म से तीन वर्ष के बच्चों पर पड़ रहा है। माता-पिता दोनो ही आय उपार्जन के लिए बाहर जा रहे हैं। घर में इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है। फलस्वरूप इन्हें झूला घरों या क्रेश, आंॅगनवाड़ी में रहना पड़ता है। जिसके लिये बच्चे के क्रमिक विकास को समझना आवश्यक है। समस्त शारीरिक गतिविधियों पर नियन्त्रण- क्रियात्मक विकास गर्भकालीन अवस्था के तीसरे माह से प्रारम्भ हो जाता है। बालक के जन्म के बाद क्रियात्मक विकास की गति तीव्र हो जाती है। लगभग 6 वर्ष की अवस्था तथा बालक अपनी |
अधिकांश मांसपेशियों की गतियों पर नियन्त्रण करना सीख जाता है। उसे इस प्रकारी के विकास के कारण ही अपने चारों ओर के वातावरण में समायोजन करने में भी सुविधा होती है बालक की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें क्रियात्मक विकास भी होता है। समाज तथा वातावरण के अनुकूल प्रतिक्रिया व व्यवहार - सामाजिक व्यवहार का आरम्भ उस समय होता है जब बच्चा लोगों और वस्तुओं में अन्तर जानने लगता है दूसरे माह के अन्त तक बच्चा जब कोई मानव ध्वनि सुनता है तो अपना सिर घुमाता है तथा वयस्क की मुस्कराहट या किटकिट की आवाज की प्रतिक्रिया मुस्कुराहट से करता है । बालक इस आयु में अपनी माता को पहचानने लगता है । चौथे महिने में बालक मनुष्य के चेहरे को देखता है, वह दोस्ताना और गुस्से वाली आवाजों के अन्तर को पहचानता है । छठे महिने में वह बड़ों के चेहरे के विभिन्न नक्सों का निरीक्षण करता है। आठवें या नवें महिने तक बच्चा सुने हुये अक्षरों को दोहराते हुये दूसरों की बोली का नकल करने की कोशिश करता है और इसी तरह सरल हावभाव या इशारों की नकल करता है। 6 माह से 8 माह में उसे प्यार से बोलना सिखाएं- वो चाहता है कि
दसवें व बारहवें महिनों में मांॅ को चाहिये कि वो इन अवसरों पर बच्चे को पास में बिठा कर उससे बाते अवश्य करे और उस समय जो उन दोनो में सम्प्रेषण हो रहा होगा वो भावनात्मक होगा और जल्दी ही बच्चा शब्दों को खोज लेगा और अपनी भावना को व्यक्त करने लगेगा । 8 माह से 12 माह में उसकी दुनिया बढ़ने लगती है -
इस समय वो अनुकरण करना शुरू कर देता है और उसे प्रकट करने के लिये खिलौनों को आधार बनाता है। इस समय वो अपने आस पास की चीजों के बारे में जानना चाहता है अतः देखभाल करने वालों को उसकी जिज्ञासा की पूर्ति सुरक्षा के साथ करनी चाहिये। साथ ही उसका पहला कदम भी उठता है पैदल चलने की दिशा में। 13 से 24 माह में वो खेल खेल में बहुत कुछ सीख जाता है -
इस आयु में वह बहुत कुछ जानना चाहता है अविभावक को चाहिये कि वो इस कार्य में उसकी मदद करे कई बार वो जानने की इच्छा से कुछ तोड़ फोड़ भी कर देता है तो ऐसी स्थिति में उसे विनाशक प्रवृत्ति का मान लिया जाता है। जो कि गलत, है बल्कि उसकी जिज्ञासा को समझ कर उसका समाधान करना चाहिये। बालक बहुत कुछ सीखता है अतः यह ध्यान में रखने की बात है कि जैसा उसे सिखाना चाहते है वैसा व्यवहार उसके सामने किया जाये। 24 माह से वो कुशलता की तरफ बढ़ना शुरू करता है -
वह नये-नये अनुभव के द्वारा बहुत कुछ सीखता है वह अपने आस पास के लोगों का अनुकरण करता है जिससे उसके सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है।
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डिजिटल इंडिया | ||||||||||||||
20 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की एक बैठक में महत्वाकांक्षी ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम को मंजूरी दी गयी। सरकार ने कहा है कि यह कार्यक्रम भारत को डिजिटल सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए निर्धारित किया गया है। डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है व इससे सुनिश्चित होगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को समयबद्ध रूप से लागू करने पर जोर दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम का मकसद भारत को डिजिटल रूप से एक सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है। यह कार्यक्रम 2018 तक चरणबद्ध तरीके से लागू किया जायेगा। डिजिटल इंडिया की प्रकृति रूपांतरकारी है तथा इससे यह सुनिश्चित होगा कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध हों। इससे सरकारी व प्रशासनिक सेवाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के साथ सार्वजनिक जवाबदेही को भी सुनिश्चित करेगा। फिलहाल अधिकतर ई-गवर्नेस परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहायता केंद्र या राज्य सरकारों में संबंधित मंत्रालयों/विभागों के बजटीय प्रावधानों के जरिये होती है। लेकिन डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अलग-अलग परियोजनाओं के लिए जरूरी कोष का आकलन संबंधित नोडल मंत्रालय/विभाग करेंगे और उसी के अनुरूप धन का आवंटन किया जायेगा। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के नौ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं: 1.ब्रॉडबैंड हाइवेज: सामान्य तौर पर ब्रॉडबैंड का मतलब दूरसंचार से है, जिसमें सूचना के संचार के लिए आवृत्तियों (फ्रीक्वेंसीज) के व्यापक बैंड उपलब्ध होते हैं। इस कारण सूचना को कई गुणा तक बढ़ाया जा सकता है और जुड़े हुए तमाम बैंड की विभिन्न फ्रीक्वेंसीज या चैनलों के माध्यम से भेजा जा सकता है। इसके माध्यम से एक निर्दिष्ट समयसीमा में वृहत्तर सूचनाओं को प्रेषित किया जा सकता है। ठीक उसी तरह से जैसे किसी हाइवे पर एक से ज्यादा लेन होने से उतने ही समय में ज्यादा गाड़ियां आवाजाही कर सकती हैं। ब्रॉडबैंड हाइवे निर्माण से अगले तीन सालों के भीतर देशभर के ढाई लाख पंचायतों को इससे जोड़ा जायेगा और लोगों को सार्वजनिक सेवाएं मुहैया करायी जायेंगी। 2.मोबाइल कनेक्टिविटी सबको सुगम-सुलभ कराना: देशभर में तकरीबन सवा अरब की आबादी में मोबाइल फोन कनेक्शन की संख्या जून, 2014 तक करीब 80 करोड़ थी। शहरी इलाकों तक भले ही मोबाइल फोन पूरी तरह से सुलभ हो गया हो, लेकिन देश के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में अभी भी इसकी सुविधा मुहैया नहीं हो पायी है। हालांकि, बाजार में निजी कंपनियों के कारण इसकी सुविधा में पिछले एक दशक में काफी बढ़ोतरी हुई है। देश के 55,000 गांवों में अगले पांच वर्षो के भीतर मोबाइल संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए 20,000 करोड़ के यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) का गठन किया गया है। इससे ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग के इस्तेमाल में आसानी होगी। 3.पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम: भविष्य में सभी सरकारी विभागों तक आम आदमी की पहुंच बढ़ायी जायेगी। पोस्ट ऑफिस के लिए यह दीर्घावधि विजन वाला कार्यक्रम हो सकता है। इस प्रोग्राम के तहत पोस्ट ऑफिस को मल्टी-सर्विस सेंटर के रूप में बनाया जायेगा। नागरिकों तक सेवाएं मुहैया कराने के लिए यहां अनेक तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जायेगा। 4.ई-गवर्नेस प्रौद्योगिकी के जरिये सरकार को सुधारना: सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए बिजनेस प्रोसेस री-इंजीनियरिंग के ट्रांजेक्शंस में सुधार किया जायेगा। विभिन्न विभागों के बीच आपसी सहयोग और आवेदनों को ऑनलाइन ट्रैक किया जायेगा। इसके अलावा, स्कूल प्रमाण पत्रों, वोटर आइडी कार्डस आदि की जहां जरूरत पड़े, वहां इसका ऑनलाइन इस्तेमाल किया जा सकता है। यह कार्यक्रम सेवाओं और मंचों के एकीकरण- यूआइडीएआई (आधार), पेमेंट गेटवे (बिलों के भुगतान) आदि में मददगार साबित होगा। साथ ही सभी प्रकार के डाटाबेस और सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मुहैया कराया जायेगा। 5.ई-क्रांति- सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी: इसमें अनेक बिंदुओं को फोकस किया गया है। ई-एजुकेशन के तहत सभी स्कूलों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने, सभी स्कूलों (ढाई लाख) को मुफ्त वाइ-फाइ की सुविधा मुहैया कराने और डिजिटल लिटरेसी कार्यक्रम की योजना है। किसानों के लिए रीयल टाइम कीमत की सूचना, नकदी, कर्ज, राहत भुगतान, मोबाइल बैंकिंग आदि की ऑनलाइन सेवा प्रदान करना। 6.सभी के लिए जानकारी: इस कार्यक्रम के तहत सूचना और दस्तावेजों तक ऑनलाइन पहुंच कायम की जायेगी। इसके लिए ओपेन डाटा प्लेटफॉर्म मुहैया कराया जायेगा, नागरिकों तक सूचनाएं मुहैया कराने के लिए सरकार सोशल मीडिया और वेब आधारित मंचों पर सक्रिय रहेगी। साथ ही, नागरिकों और सरकार के बीच दोतरफा संवाद की व्यवस्था कायम की जायेगी। 7.इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र से जुड़ी तमाम चीजों का निर्माण देश में ही किया जायेगा। इसके तहत ‘नेट जीरो इंपोर्ट्स’ का लक्ष्य रखा गया है ताकि 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके। इसके लिए आर्थिक नीतियों में संबंधित बदलाव भी किये जायेंगे। फैब-लेस डिजाइन, सेट टॉप बॉक्स, वीसेट, मोबाइल, उपभोक्ता और मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट एनर्जी मीटर्स, स्मार्ट कार्डस, माइक्रो-एटीएम आदि को बढ़ावा दिया जायेगा। |
8.रोजगारपरक सूचना प्रौद्योगिकी: देशभर में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार से रोजगार के अधिकांश प्रारूपों में इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है। इसलिए इस प्रौद्योगिकी के अनुरूप कार्यबल तैयार करने को प्राथमिकता दी जायेगी। कौशल विकास के मौजूदा कार्यक्रमों को इस प्रौद्योगिकी से जोड़ा जायेगा। संचार सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियां ग्रामीण कार्यबल को उनकी अपनी जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षित करेगी। गांवों व छोटे शहरों में लोगों को आइटी से जुड़े जॉब्स के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा। आइटी सेवाओं से जुड़े कारोबार के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जायेगा। इसके लिए दूरसंचार विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है। 9.अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम्स: डिजिटल इंडियाकार्यक्रम को लागू करने के लिए पहले कुछ बुनियादी ढांचा बनाना होगा यानी इसकी पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी। डिजिटल इंडिया की राह में प्रमुख चुनौतियांडिजिटल इंडिया कार्यक्रम को इसके लक्ष्य तक पहुंचाने की राह में कई चुनौतियां से जूझना पड़ेगा। इसमें मानव संसाधन यानी कर्मचारियों की कमी का मसला सबसे अहम हो सकता है। देश में सूचनाओं को प्रेषित करने वाली संस्था नेशनल इंफोर्मेटिक्स सेंटर (एनआइसी) के पास इस टास्क को पूरा करने की क्षमता नहीं है। इसलिए सभी स्तर पर अधिकारी/मुख्य तकनीकी अधिकारी की जरूरत होगी। इसके अलावा, एक अहम मसला वित्तीय संसाधनों से जुड़ा है। नेसकॉम का कहना है कि देश के सभी ढाई लाख पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने के लिए 20,000 करोड़ से ज्यादा का खर्च आ सकता है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से प्रभावित हो सकती है। सरकार ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की घोषणा अब की है। ऐसे में यह सवाल बनता है कि डिजिटल इंडिया क्यों? डिजिटल इंडिया से क्या बदलेगा? डिजिटल इंडिया के लक्ष्य क्या हैं? डिजिटल इंडिया की सबसे ज्यादा जरूरत कहां हैं? हम पिछले कई वर्षो से यह महसूस कर रहे हैं कि सूचनाओं के संप्रेषण से लोगों के जीवन में बदलाव आया है। लोग अपने अधिकार के प्रति सजग हुए हैं। आम जनता के हित में केंद्र और राज्य सरकारों की बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं। कोशिश यही है कि समाज के सबसे हाशिये पर बैठे लोगों के जीवन में बदलाव आये। हालांकि, भ्रष्टाचार के दीमक के कारण और अपने अधिकार के विषय में सूचना के अभाव के कारण लोगों को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है। ज्यादातर पैसा उन लोगों तक नहीं पहुंचा जो कि इसके हकदार थे। यदि सूचनाओं को डिजिटल कर दिया जाए और संप्रेषण को आसान बना दिया जाए, तो सरकार की योजनाओं के विषय में लोगों को जानकारी होगी। शिक्षा से लेकर गरीबी उन्मूलन तक विकास की 29 ऐसी योजनाए हैं, जिन्हें लागू करने के लिए हम पंचायतों पर निर्भर हैं। देश के ग्रामीण तभी इन योजनाओं का लाभ उठा पायेंगे, जब उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी होगी। अगर ग्रामीणों को इन योजनाओं की सही जानकारी दी जाये, इनमें खर्च की जाने वाली राशि और होने वाले काम के विषय में जानकारी हो तो वे अपने अधिकार मांग सकते हैं। यदि हर पंचायत में इंटरनेट हो, उनकी अपनी वेबसाइट हो, उस वेबसाइट में गांव-पंचायत से जुड़ी सभी सूचनाओं, योजनाओं, उनके निष्पादन की स्थिति का वर्णन हो तो गांव को इससे काफी फायदा होगा। पिछले कुछेक वर्षो में मोबाइल ने लोगों के जीवन को सरल बनाया है। आज मोबाइल का इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी है। इसके जरिये हम जनता से जुड़ी सेवाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचा सकते हैं। भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है। इससे बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा। पिछले कई वर्षो से इस विषय पर हम देश के अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे हैं। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को सिर्फ सरकारी योजनाओं या सरकारी कर्मचारियों तक सीमित रखने से बात नहीं बनेगी। इसके तहत कुछेक स्टेक होल्डर्स को भी शामिल किया जाना चाहिए। अगर कुछ विशेष क्षेत्रों को चिह्न्ति करके सरकार इस दिशा में आगे बढ़े तो एक निश्चित समय सीमा के तहत इसका काफी फायदा हो सकता है। मसलन सरकार को इस डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में एनजीओ को भी शामिल करना चाहिए। इस देश में लगभग 3.3 मिलियन एनजीओ हैं। प्रत्येक 600 व्यक्ति पर लगभग एक एनजीओ है। इन एनजीओ के जरिये कई बिलियन डॉलर देश-विदेश से आये पैसे को खर्च किया जाता है। समाज से जुड़े इस क्षेत्र की पहुंच गांव-गांव तक है। इसलिए इनकी निगरानी भी उतनी ही जरूरी है। एक तरफ सरकार सभी विभागों की सारी सूचनाएं वेबसाइट पर डालने की बात कर रही है। विकास कार्यक्रमों में एनजीओ की भी भागीदारी है, जिनके जरिये बड़े पैमाने पर रकम खर्च की जा रही है। यदि इन्हें इस कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जाता है तो डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को नुकसान पहुंचेगा। सरकार ने जन-धन योजना शुरू करने की बात कही है। इसका लक्ष्य है, लोगों के खातों में कैश ट्रांसफर हो। इसलिए डिजिटल इंडिया के तहत जितना मशीनीकरण होगा, कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग उतनी ही आसान होगी और लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंचेगा।
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राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान, हैदराबाद के सहयोग से ट्रेनिंग मेथड्स एंड स्किल्स पर रीजनल स्तरीय प्रशिक्षण | ||||||||||||||
संस्थान में राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडी एंड पीआर), हैदराबाद के सहयोग से दिनांक 10 से 14 जुलाई 2017 तक रीजनल स्तरीय पर ट्रेंनिग मेथड्स एंड स्किल्स विषय पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया, इस प्रशिक्षण में म0प्र0 के साथ ही महाराष्ट्र के ईटीसी व एमजीएसआईआरडीपीआर के संकाय सदस्यों को प्रशिक्षण दिया गया। उक्त प्रशिक्षण दौरान, प्रशिक्षण की विभिन्न विधियों यथा सिस्टमेटिक एप्रोच टू ट्रेनिंग,एडल्ट लर्निग के सिद्वांत,लेक्चर मेथड्स इत्यादि की |
सैद्वांतिक व अभ्यास के माध्यम से जानकारी दी गई। प्रतिभागियों को एनआईआरडी एंड पीआर, हैदराबाद से आये विशेषज्ञ डॉ आर0 पी0 आचारी व डॉ व्ही0 के0 रेड्डी के साथ ही स्थानीय रिसोर्स पर्सन प्रो0 अंचल मिश्रा व प्रो0 पुष्पेन्द्र तिवारी द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। सत्र का समापन संस्थान के संचालक श्री संजय सराफ की उपस्थिति में किया गया। इस अवसर पर प्रशिक्षण में उपस्थित प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण को अत्यंत उपयोगी बतलाया। उक्त अवसर पर संचालक श्री संजय कुमार सराफ प्रतिभागियों को निरंतर सीखने की प्रेरणा दी, क्योंकि जब तक आदमी सीखता रहता है, जवान बना रहता है। उन्होने एनआईआरडी एंड पीआर, हैदराबाद के सहयोग हेतु उनका आभार व्यक्त किया। संस्थान की ओर से सत्र का समन्वय श्री एन0 पी0 गौतम, संकाय सदस्य द्वारा किया गया।
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