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त्रैमासिक - पांचवां संस्करण (द्वितीय वर्ष) | अक्टूबर,2011 |
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अनुक्रमणिका | हमारा संस्थान | ||||||||||||
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नवनियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी/विकासखण्ड अधिकारी का आधारभूत प्रशिक्षण | |||||||||||||
नवनियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं विकासखण्ड अधिकारियों का द्वितीय बैच संस्थान में दिनांक 10 अगस्त 2011 से मूलभूत प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है। इस बैच में 6 मुख्य कार्यपालन अधिकारी तथा 8 विकासखण्ड अधिकारी प्रशिक्षण ले रहे हैं। प्रशिक्षण में प्रतिभागियों के जनपद पंचायतों में कार्य करने के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। प्रतिभागियों को अपने अनुभवों के आधार पर डॉ. रवीन्द्र पश्तौर, कमिश्नर, जबलपुर संभाग ने काम करने के सफल तरीकों पर भी मार्गदर्शन दिया। प्रतिभागियों को विभिन्न योजनाओं को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने के तरीके भी बताए जा रहे हैं। प्रशिक्षण से जुड़े विषयवस्तु पर प्रशिक्षार्थियों |
का क्षेत्रीय भ्रमण भी कराया जा रहा है। विभिन्न जनपद पंचायतों में पदस्थ कर इन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया जायेगा। इसके साथ ही साथ जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान (वाल्मी) भोपाल एवं एमएम सदगुरू द्वारा ग्रामीण विकास संस्थान दाहोद, गुजरात में भी योजना एवं विकास से संबंधित विषयों पर प्रशिक्षण हेतु ले जाया जायेगा। यह प्रशिक्षण 15 नवम्बर 2011 तक आयोजित होंगे।
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स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना में स्व-सहायता समूहों का प्रशिक्षण | |||||||||||||
हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इससे छुटकारा पाने के लिए स्वरोजगार को बढ़ावा देना होगा। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजागर योजना के अंतर्गत स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए स्व-सहायता समूहों का गठन किया जाता है। स्व-सहायता समूह एक ऐसा अनौपचारिक संगठन है जिसमें 10-20 ग्रामीण गरीबी रेखा के नीचे वाले व्यक्ति सदस्य होते है जिसने अपने समूह के सदस्यों की गरीबी को दूर करने का बीड़ा उठाया है। योजनांतर्गत मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम, ग्रामोद्योग, ग्रामीण विकास आदि योजनाओं के परिचारण के लिए महिला स्व-सहायता समूहों को माध्यम बनाया जा रहा है। समूह गतिविधियाँ: योजना समूह दृष्टिकोण को वरीयता देती है गरीबी उन्मूलन की दिशा में गरीब स्वयं निर्णय लें। स्व-सहायता समूह अपने विकास हेतु तीन प्रमुख चरणों से गुजरता है।
प्रशिक्षण: योजना की कुल राशि में से 10 प्रतिशत राशि प्रशिक्षण फण्ड हेतु रखी जाती है। प्रदेश में एसजीएसवाय योजनांतर्गत लाखों स्व-सहायता समूहों का गठन किया गया है परन्तु समुचित प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन के अभाव में समूह निष्क्रिय होकर विघटित हो जाते है। प्रशिक्षण के द्वारा ऐसे निष्क्रिय एवं विघटित समूहों का कौशल उन्नयन किया जाता है। इन समूहों को योजना की जानकारी तथा विभिन्न व्यवसायिक कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाता है। योजना संबंधी प्रशिक्षण: एस.जी.एस.वाय. योजना का परिचय, प्रारंभ, उद्देश्य, समूह गठन, बैंक से लिंकेज, प्रथम एवं द्वितीय ग्रेडिंग, जिला पंचायत से रिवाल्विंग फंड, सी. सी. लिमिट संबंधी जानकारी दी जाती है। स्व-सहायता समूह गठन, अच्छे समूह के लक्षण, समूह विघटन के कारण और निदान जैसे विषयों पर भी प्रशिक्षण दिया जाता है। |
व्यावसायिक प्रशिक्षण: इसके अंतर्गत समूहों को कौशल उन्नयन, मार्केटिंग, एसजीएसवाय अंतर्गत स्थापित हाट बाजार, मेले प्रदर्शनी आदि के संबंध में जानकारी दी जाती है। विकासखण्ड स्तर पर बाजार एवं कच्चे माल की उपलब्धता को दृष्टिगत रखते हुए स्वरोजगारियों को व्यवसाय बढ़ाने उनके कौशल पर प्रशिक्षण दिया जाता है। कुछ व्यवसाय इस प्रकार है -
इनके अतिरिक्त भी स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता एवं पारंपरिक कौशल के आधार पर कई स्वरोजगार के प्रशिक्षण दिये जा सकते हैं। प्रशिक्षण से सशक्तिकरण: प्रशिक्षण से स्व-सहायता समूहों का सशक्तिकरण एवं रिकार्ड संधारण में उन्हें दक्षता प्राप्त होती है। उनके आत्म विश्वास में अभिवृद्धि होती है। प्रशिक्षण से स्वरोजगारियों को समूह की संकल्पना वित्त पोषण, अनुदान की पात्रता, ऋण एवं चुकोती अवधि, रिकार्ड संधारण की समझ विकसित होती है।
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एक स्व-सहायता समूह के सफलता की कहानी | |||||||||||||
ग्वालियर के डबरा जनपद का छोटा सा ग्राम हरिपूर डबरा से 8 कि.मी. दूर। इस ग्राम के अधिकतर लोग, जिनमें महिला भी हैं, रोज मजदूरी करने जाते, जहां बड़ी मुश्किल से अपने लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर पाते थे। घरों की स्थिती ऐसी थी , कि परिवार के लोगों को रोजाना गुजारे के लिए रोज कमाना पड़ता था। कभी कभी काम नहीं मिलने पर गूजारा भी मुश्किल हो जाता था। परिवार के बच्चे भी कभी कभी मजदूरी करने जाते थे। इस कारण उनका स्कूल जाना भी नहीं हो पाता था। गाँव के लोगों को अपने छोटे छोटे कामों के साहूकारों के सामने पैसो के लिए हाथ पसारने पड़ते थे। ये लोग गाँव के बड़े लोग थे जो इनका आर्थिक शोषण करते ही थे, कभी कभी पैसा ना चुकाने पर मार पिटाई भी करते थे इस विकट परिस्थति से कुछ लोग तंग आ गये थे तथा गाँव छोड़कर शहर में जाकर रोजगार तलाशने का विचार करने लगे थे। ऐसी स्थिति में एक दिन ग्राम पंचायत के सचिव ने उन्हें बताया कि गाँव में एक योजना आई है जिसका नाम एस.जी.एस.वाय. है। इसमें समूह बना कर आप अपनी गरीबी दूर कर सकते है। गांव में ग्रामसभा हुई, श्री प्रमोद समाधिया, एस.डी.ई.ओ. ने ग्रामसभा में समूह व एस.जी.एस.वाय. के संबंध में पूरी जानकारी दी तथा गांव के लोगों की शंकाओं का भी समाधान किया , सोच-विचार कर दस महिलाओं ने जो गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करती थी, समूह बनाने के लिए तैयार हो गई। गाव के लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि गाँव की अनपढ़ महिलाएं आप अपनी तकदीर व गाँव की तस्वीर बदलने निकल पड़ी हैं। कई लोगों ने उनको सरकारी योजना के चक्कर में ना पड़ने तक सलाह दी और कहा कि चक्कर लगा-लगा कर परेशान हो जाओगी लेकिन महिलाओ को अपने निर्णय पर विश्वास था। समूह की लिखा पढ़ी करने के लिए गांव का एक युवक तैयार हो गया। वह दसवीं कक्षा में पढता था इस प्रकार गांव के चौपाल पर समूह की प्रथम बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में समूह का नाम समूह के अध्यक्ष, सचिव का चयन बचत राशि आदि के बारे में बात हुई । इन सभी बातों को एक रजिस्टर में लिखा गया। सभी महिलाओं ने मिलकर समूह का नाम ‘‘कृष्णराधा स्वयं सहायता समूह’’ रखा। श्रीमती रामबाई को अध्यक्ष व बत्तोंबाई को इसका सचिव बनाया गया तथा सभी ने निर्णय लिया सभी लोग 50-50 रूपये महीने की बचत कर समूह के खाते में जमा करेंगे। ग्राम सरपंच, सचिव, ए.डी.ई.ओ. एवं जनपद के सी.ई.ओ. साहब ने समूह का खाता आर.आर.बी. शाखा मगरोरा में खुलवा दिया। यह बात जुलाई माह 2007 की हैं। धीरे-धीरे समूह अपना कार्य करने लगा। प्रति माह बैठक होती जो पैसा जमा होता उसको एक रजिस्टर में लिखकर समूह की महिलाये बैंक में जमा कर आती, इस तरह गाँव की महिलाओं ने बैंक का कार्य करना सीखा। समूह को चालू हुए अब 6-7 से माह हो गये थे। एक दिन समूह की बैठक में पंचायत के ए.डी.ई.ओ. आये उन्होंने समूह की सचिव वत्तोबाई से बैंक की पासबुक लाने को कहा। जब बैंक की पास बुक देखी तो तब पास बुक में हर माह पैसा जमा दिख रहा था अर्थात समूह की प्रत्येक महिला मात्र 50 रूपये प्रतिमाह बैंक के खाते में जमा कर रही थी। ए.डी.ई.ओ. को बहुत आश्चर्य हुआ, उन्होने समूह की महिलाओं से पूछा कि आप लोगों को पैसे की जरूरत नहीं पड़ती? इस पर महिलाये बोली गाँव में साहूकार तो हैं पैसा लेने के लिए तब ए.डी.ई.ओ. ने उनसे कहा आप लोग जो पैसा जमा कर रहे हैं उसमें जिन महिलाओं को जरूरत है उन्हें देना क्यों शुरू नहीं कर देते। आपको जरूरत मंद महिलाओं को इस जमा राशि में से लोन देना शुरू करना चाहिए। समूह की महिलाओं ने कहा कि यह बात तो पता ही नहीं थी। अब हम समूह की बचत से ही आपस में लेने देन प्रारंभ करेंगे। एक दिन समूह की महिला कलावती की तबीयत अचानक खराब हो गई उसे उल्टी दस्त होने लगे। वह गांव की आशा कार्यकर्ता के पास गई । उसने कहा कि इसे डबरा ले जाना पड़ेगा डाक्टर को दिखाना पड़ेगा। कलावती ने कहा उसके पास डबरा आने जाने व दवाई के पैसे नहीं है, तब समूह की सचिव ने कहा कि तुम अपने समूह से लोन क्यों नहीं ले लेती? कलावती तुरंत रामबाई के पास गई। उसे 1000 रूपये की आवश्यकता थी। समूह की सभी महिलाओं ने 1000 देने में अपनी सहमति दे दी। इस प्रकार समूह ने आतंरिक लोन लेना देना प्रारंभ हुआ। अब जब किसी महिला को घरेलू कार्य के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ती, वह समूह से पैसे लेकर काम चलाती। |
बाद में वह किश्तों में पैसा जमा करने लगी। अब समूह अच्छा चलने लगा। कुछ दिनों बाद बैंक मैनेजर समूह की कार्य पद्धति देखने पहुंचे, उनका रजिस्टर देखा लेन-देन का हिसाब देखा, समूह की महिलाओं से मिलकर उनको बहुत अच्छा लगा। उन्होनं ए.डी.ई.ओ. से कहा इस समूह की अब ग्रेडिग करना चाहिए। इनर्को आर्थिक मदद (सी.सी.एल.) के रूप में देकर इस समूह को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना चाहिए। समूह की पहली ग्रेडिग हो गई। सभी रिकार्ड भली-भांति देकर शाखा प्रबंधक ए.डी.ई.ओ. , सी.ई.ओ., जनपद पंचायत ने समूह की ग्रेडिग की। यह वर्ष 2008 में हुई। जिला पंचायत/जनपद पंचायत से 8000 रूपये की रिवाल्विंग फंड देकर 25000 रूपये सी.सी.एल. लिमिट बना दी । इस राशि का उपयोग समूह की आतंरिक लेन देन के लिए किया गया। आगे कुछ महीनो में ही उन्होंने बैंक द्वारा दी गई सी.सी.एल. की राशि भी बैंक में जमा कर दी। अब इसकी सैंकड ग्रेडिग की गई । समूह अच्छा कार्य कर रहा था तो मैनेजर, ए.डी.ई.ओ.एवं सी.ई.ओ. ने इस समूह की सैंकड ग्रेडिग की व सभी औपचारिकताए पूर्ण कर दी। समूह ने अपनी गतिविधि का चयन बकरी पालन के रूप में किया। वर्ष 2009 में समूह को 3 लाख रूपये का ऋण मिला जिसमें 1 लाख रूपये अनुदान राशि थी। जिसमें प्रत्येक स्वरोजगारियो को 10 बकरियो (10+1) की यूनिट प्रदाय की गई सभी महिलाएं बकरी पालन का व्यवसाय करने लगी जो अभी तक कर रही हैं अब उनके घर खुशहाली आ गई। बकरी पालन के माध्यम से समूह की आर्थिक स्थिति अच्छी होने लगी। समूह ने मेहनत व आर्थिक लाभ लेकर बैंक का लोन जमा कर दिया। बकरी के बच्चों को बेचकर व दूध का धंधा कर समूह अपने पैरों पर खड़ा हो गया। वे सभी स्वावलंबी हो गई। उनके कार्य को देखकर जनपद पंचायत व जिला पंचायत ने इस समूह को मध्यान्ह भोजन योजना का कार्य दिया। वर्ष 2010 में इस समूह को तीन स्कूलों में एम.डी.एम. योजना का कार्य दिया गया जो ये महिलाये आज भी कर रही हैं, इस समूह की एक महिला का लड़का इन्जीनियरिंग की पढाई कर रहा है इस प्रकार इस समूह की महिलाओं ने जो तरक्की की उससे उनके घर व गाव में खुशहाली आ गई। इस समूह को देखकर गांव में दो समूह बनाये गये। आज समूह की महिलाएं अपने द्वारा किये फैसलो पर खुश हैं और गाँव में अन्य विकास कार्यो के क्रियान्वयन में भी हाथ बटा रही है।
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स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना - समूह की निधि बढाने हेतु रिवाल्विंग फण्ड | |||||||||||||
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना को गति देने के लिये ऋण प्रदाय एक महत्पूर्ण अंग है। अनुदान केवल सहायक के रूप में होगा परिणाम स्वरूप यह योजना मुख्यत बैंक की अधिकतम संलग्नता की अपेक्षा करती है। योजना के प्रारम्भ से ही प्राथमिकता स्वयं सहायता समूह के गठन को दी गई एवं तत्पश्चात 6 माह में समूह की प्रथम ग्रेडिग किये जाने का प्रावधान रखा गया प्रथम ग्रेडिंग के पश्चात समूह को रिवाल्विंग फण्ड की पात्रता हासिल हो जाती है। रिवाल्विंग फण्ड के प्रबन्धन हेतु निम्नलिखित मार्गदर्शी सिद्वान्त हैं :
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बदलती तस्वीर | |||||||||||||
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स्वसहायता समूह एवं महिला सशक्तिकरण | |||||||||||||
आजादी के बाद हमारे देश में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन के बहुत से कार्यक्रम चलाये गये, लेकिन इन कार्यक्रमों के अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हुये क्योंकि इन कार्यक्रमों में गरीबों की अपनी कोई निर्णायक भूमिका नहीं रही। परिणामों के आधार पर माना गया कि गरीबों को वित्तीय सहायता देने के साथ-साथ यह आवश्यक है कि उन्हें आर्थिक और सामाजिक उन्नति के लिये सशक्तिकरण के साधन प्रदान किये जायें। भारतवर्ष में शुरू से महिलाएं पुरूष प्रधान समाज में अपनी सभी आवश्यकताओं के लिये पुरूषों पर निर्भर रहीं हैं और इसी लिये महिलाओं में छिपी प्रतिभाऐं भी आजीवन सुषुप्त अवस्था में ही रह जातीं हैं। अकेली महिला के लिए अपनी सीमाओं से बाहर निकल कर कुछ कर पाना और आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं है। आज भी हमारे देश की ग्रामीण निर्धन जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग अपनी आकस्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए साहूकारों पर निर्भर हैं ये साहूकार इन गरीबों के अनपढ़ होने का भरपूर फायदा उठाकर न केवल उन्हें अपना आजीवन कर्जदार बनाकर इनका शोषण करते हैं बल्कि कभी-कभी इनकी पीढ़ी दर पीढ़ी को भी ऋण के चक्रव्यूह में हमेशा के लिए फंसा देते हैं। ऐसे में उनकी छोटी-छोटी एवं बार-बार आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक वैकल्पिक प्रणाली की अवधारणा स्थापित की गई। जिसे स्वयं सहायता समूह का नाम दिया गया जो महिलाओं की ऋण के रूप में छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ महिलाओं के सशक्तिकरण का एक प्रबल माध्यम भी है। यहीं पर स्वसहायता समूह की महत्ता स्पष्ट होती है। समूह की महिलाओं में आपसी बातचीत से धीरे-धीरे विश्वास जागता है और छोटी-छोटी बचतें कर वे अपनी एवं अपने परिवार की आवश्यकतओं की पूर्ति करतीं हैं जिससे उनके जीवन यापन का स्तर बढ़ता है। निर्धनों में बचत करने की आदत नहीं होती जिससे उधारलेना उनकी मजबूरी होती है। गरीब महिलाएं जिनके पास संसाधनों का आधार नहीं है जो अशिक्षित हैं सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़ीं हैं उनकी आकस्मिक ऋण की आवश्कताओं की पूर्ति के लिए स्व-सहायता समूह सर्वथा उपयुक्त साधन है। ऐसी स्वयं सिद्ध सामाजिक मान्यता है कि महिलाएं समाज में श्रेष्ठ बचतकर्ता होतीं हैं एवं ईमानदारी पूर्वक उधार वापस करने की प्रवृत्ति रखतीं हैं। इसलिए पुरूषों की तुलना में महिलाओं के स्वसहायता समूह सफलता पूर्वक संचालित एवं विकसित हैं। स्वर्ण जंयती ग्राम स्वरोजगार योजना में महिलाओं के 50% समूह गठित किये जाने का प्रावधान है। वर्तमान में मध्यप्रदेश में 3 लाख से अधिक स्व सहतायता समूह गठित किये गये हैं। जिनमें 40% समूह महिलाओं के हैं एवं एक करोड़ से अधिक राशि बचत के रूप में बैंकों में जमा की गई है। जो कि महिला बचत समूहों की सफलता सिद्ध करती है। स्वसहायता समूहों से महिलाओं के सशक्तिकरण के कुछ प्रमुख बिन्दु :
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उपरोक्तानुसार स्पष्ट है कि स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजनांतर्गत गठित स्व-सहायता समूह ग्रामीण क्षेत्रों की निर्धन, पिछड़ी, कमजोर एवं समाज में उपेक्षित महिलाओं के सशक्तिकरण एवं ग्रामीण क्षेत्रों का संतुलित विकास करने के लिए शासन से मान्यता प्राप्त संस्थागत मंच है। इसे अभियान के रूप में प्रेरित एवं प्रोत्साहित किये जाने की महती आवश्यकता है।
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अपेक्षाओं एवं बाधाओं के आंकलन हेतु राज्य स्तरीय कार्यशालाओं का आंकलन | |||||||||||||
स्थानीय स्वशासन की क्षमता वर्धन परियोजनान्तर्गत तीन राज्य स्तरीय कार्यशालाओं का आयोजन ईटीसी भोपाल, इंदौर तथा एम.जी.एस.आई.आर.डी. जबलपुर में किया गया । पंचायतों एवं विभिन्न विभागों की परस्पर अपेक्षाओं तथा योजनाओं/कार्यक्रमों के कियान्वयन में आने वाली बाधाओं के चिन्हांकन हेतु उक्त कार्यशालाओं का आयोजन किया गया । इन कार्यशालाओं में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के विभिन्न कार्यक्रमों/योजनाओं यथा बी.आर.जी.एफ. जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम, समग्र स्वच्छता अभियान, जिला गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, मध्यप्रदेश ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम तथा विभिन्न विभागों यथा सामाजिक न्याय विभाग, पंचायती राज, स्वास्थ्य, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, पशुपालन, कृषि, महिला, बाल विकास, ऊर्जा, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति तथा राजस्व विभाग आदि शामिल रहें। इन कार्यशालाओं में राज्य स्तर से विभागवार नामांकित अधिकारियों के अतिरिक्त पंचायत सचिव, सरपंच, पंचायत समन्वय अधिकारी भी शामिल रहें। कार्यशालाओं में ‘‘प्रशिक्षण आवश्यकता आंकलन’’ की विभिन्न प्रविधियों का प्रयोग किया गया । जिसमें विभिन्न प्रशिक्षण तथा गैर प्रशिक्षण आवश्यकताओं का चिन्हांकन किया गया यथा :
कार्यशालाओं को तत्कालीन आयुक्त, सामाजिक न्याय विभाग, तथा वर्तमान सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, श्री हीरालाल त्रिवेदी तथा संचालक, ग्रामीण रोजगार ने सम्बोधित कर मार्गदर्शन प्रदान किया। |
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त्रिस्तरीय पंचायतराज प्रतिनिधियों एवं क्रियान्वयकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं का आंकलन | |||||||||||||
संस्थान में दिनांक 17-18 अगस्त, 2011 को यू.एन.डी.पी.-सी.डी.एल.जी. परियोजना के तकनीकी सहयोग अधिकारी तथा संस्थान एवं ई.टी.सी. के संकाय सदस्यों के साथ पंचायतराज प्रतिनिधियों एवं क्रियान्वयकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं का आकलन (टी.एन.ए.) करने एक बैठक का आयोजन किया गया जिसमे निर्णय लिया गया कि पंचायतीराज संस्थाओं के लिए भविष्य में आयोजित होने वाले प्रशिक्षणों की आवश्यकताओं का आकलन एक सुनियोजित प्रक्रिया से किया जाये जिसमे सभी स्टैक होल्डर्स की अपेक्षाए समाविष्ट की जा सके। ग्राम पंचायत स्तरीय टी.एन.ए. प्रश्नावली के माध्यम से तथा जिला एवं जनपद स्तरीय टी.एन.ए कार्यशालाओं का आयोजन कर किये जाने का निर्णय लिया गया। इसी अनुक्रम में दिनांक 1 से 3 सितम्बर 2011 को जनपद पंचायत के प्रतिनिधियों व क्रियान्वयकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं के लिए कार्यशाला आयोजित हुई जिसमे जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के अलावा महिला बाल विकास विभाग, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, वन विभाग के |
अधिकारी तथा जनपद पंचायत के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य इत्यादि कुल 35 प्रतिभागी शामिल हुए। जिला पंचायत के प्रतिनिधियों एवं क्रियान्वयकों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं के आकलन हेतु दिनांक 12 -14 सितम्बर, 2011 को कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें तीनों स्तर के पंचायत प्रतिनिधि तथा जिला स्तरीय क्रियान्वयकों सहित 41 प्रतिभागी उपस्थित रहे। ग्राम पंचायत स्तरीय प्रशिक्षण आवश्यकताओं के आकलन सिवनी, इंदौर, नौगाँव और ग्वालियर ई.टी.सी. द्वारा प्रश्नावली के माध्यम से ग्राम पंचायत प्रतिनिधि तथा कार्मिको से साक्षात्कार करते हुए पूरा किया जा रहा है। प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर पंचायतीराज संस्थाओं के लिए भविष्य के प्रशिक्षण-मोड्यूल तथा सन्दर्भ सामग्री तैयार की जाएगी।
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