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त्रैमासिक - सातवां संस्करण (द्वितीय वर्ष) | अप्रैल, 2012 |
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अनुक्रमणिका | हमारा संस्थान | ||||||||||||||||||||||||||||
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प्रमुख सचिव महोदया, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का संस्थान में प्रथम आगमन | |||||||||||||||||||||||||||||
प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश शासन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग श्रीमती अरूणा शर्मा का संस्थान में दिनांक 11 फरवरी, 2012 को प्रथम आगमन हुआ। |
उन्होंने संस्थान के अधिकारियों एवं संकाय सदस्यों के साथ संस्थान में संचालित गतिविधियों को जानकारी प्राप्त की तथा संस्थान के उन्नयन के लिए तैयार किए गए प्रस्तावों पर विचार-विमर्श कर कार्य कराने के निर्देश दिए।
संस्थान परिसर का भ्रमण करते हुए हाल ही में स्थापित ड्रिप-इरीगेशन, सघन प्लांटेशन, जैविक सब्जी-भाजी के प्रयासों की सराहना की तथा निर्देश दिए कि इन्हें प्रतिभागियों को प्रदर्शित कराया जाए । संस्थान के ग्रंथालय को कम्प्यूटरीकृत करने उठाए गए कदम को उन्होंने एक अच्छी पहल बताया तथा सुझाव दिया कि विषयवार पुस्तकों के Abstracting को कार्य भी कराया जाए। प्रमुख सचिव के भ्रमण में श्री कटारे, मुख्य अभियंता, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, श्री विशेष गढ़वाले मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत जबलपुर, श्री राठौर, अधीक्षण यंत्री तथा श्री वर्मा कार्यपालन यंत्री, ग्रा.यां.से. भी साथ रहे।
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बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाना ही सरपंच दुर्गाबाई का मकसद | |||||||||||||||||||||||||||||
दुर्गा तेकाम जिंदगी के कठिन से कठिन क्षणों को अपने पक्के इरादे के साथ जीने वाली एक असाधारण सी दिखने वाली साधारण महिला है। गांव की बेटियों के लिये वो एक मिसाल है, जब किसी बालिका से यह पूछो की वह आगे बडी होकर क्या बनना चाहती है तो बस वो दुर्गा तेकाम की ओर अंगुली से इशारा कर मुस्कुरा देती है। 2010 में दूसरी पंचवर्षीय में पुनः सरपंच का दारोमदार निभाने वाली 37 वर्षीय यह महत्वकांक्षी महिला अत्यंत साधारण आदिवासी परिवार से हैं, पांच भाई बहिनों में दूसरे नंबर की दुर्गा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वो एक दिन कई लोगों की प्रेरणा बन जायेगी। अपने पति व दो बच्चों के साथ पारिवारिक भूमिका का निर्वाह करती हुई दुर्गा अब कक्षा हायर सेकेण्डरी की परीक्षा देने में मशगूल है। साथ ही वह 8 मार्च को होने वाले अंतर्राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण सम्मेलन की तैयारियों को भी अपने महिला शक्ति संगठन की बहनों के साथ पूर्ण करने में व्यस्त है। बीच बीच में वह सरपंच होने के नाते पंचायत के कामों की भी समीक्षा कर मानीटरिंग करती रहती है। दुर्गाबाई का कहना है- ‘‘मैं पंचायत में पारदर्शिता व जवाबदेही के साथ काम करना चाहती हूं। स्वयंसेवी संस्था सृजन सहभागी विकास एवं शोध संस्थान से मुझे सहयोग और मार्गदर्शन |
मिलता रहता है। संस्था के सहयोग से हमने महिला शक्ति संगठन बनाया है जो महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहा है। पिछले साल हमने 8 मार्च को महिला सम्मेलन का आयोजन किया था।‘‘
वर्ष 1997 में विवाह के बंधन में आबद्ध होकर जब दुर्गा अपने ससुराल रजोला आयी तो गांव की बेटियां माध्यमिक शाला पढ़ने के लिए अपने गांव से राष्ट्रीय राजमार्ग 7 पर बसे ग्राम सुकतरा (15 किमी) व गोपालगंज (12 किमी) जाया करती थी उस वक्त न तो बेटियों के लिए सायकिल उपलब्ध हो पाती थी और न ही ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण मोटर यान जैसे अधिक साधन उपलब्ध थे। बच्चियां खेल-खेल में पैदल ही दूरियां तय कर अपने स्कूल पहुंचा करती थी। दुर्गा ने जब यह मंजर देखा तो उसे यह समस्या पहाड़ सी लगी। किंतु अब उस पर जीत पाना उसका संकल्प बन चुका था कारणवश उसने पंचायत का चुनाव लड़ा और एक प्रत्याशी को 350 से भी अधिक वोटों से परास्त कर अपने मूल्यों पर जीत हासिल की। जिसका एक मुख्य पहलू यह रहा कि चुनाव में दुर्गा ने न तो शराब वितरित की और न ही धनराशि वो तो बस अपने पति गोपाल के साथ हाथ जोड़कर पंचायत के विकास और उसमें भी सर्वोच्च प्राथमिकता में बच्चो के लिए माध्यमिक स्कूल खुलवाने के मांग पर वोट मांगती। बहरहाल क्षेत्र के बाहुबली कुशल राजनीतिज्ञों से दो-चार होती हुई दुर्गा की चुनाव में जीत सुनिश्चित हुई। और वो सरपंच चुनी गई। दुर्गा तेकाम का सपना है कि गांव की बेटियां गांव में ही हायर सेकेण्डरी तक शिक्षा पाये और अपने इस सपने को साकार करने के लिए वह तीन बार महामहिम राष्ट्रपति एपीजे कलाम व महामहिम श्रीमति प्रतिभा पाटिल के साथ-साथ दो बार महामहिम राज्यपाल श्री बलराम जाखड़ व महामहिम राज्यपाल श्री रामेश्वर ठाकुर से भी मिली। एक छोटे से गांव की एक साधारण सी महिला का देश व प्रदेश की राजधानी में जाकर अपनी बातो को रखना अत्यंत की असाधारण कार्य है। जो यह दर्शाता है कि दुर्गा न सिर्फ अपने इरादो की पक्की है बल्कि वह हर कीमत पर अपने सपने को साकार कर ही दम लेने वाली है। अपनी ग्राम पंचायत परतापुर को सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत का दर्जा दिलाने के लिए एवं गांव के समस्त हितग्राही परिवारो को विभिन्न योजनाओ का लाभ दिलाने के लिए गंभीरता के साथ सक्रिय है इसी का परिणाम है कि अपने कार्यकाल में इन्होंने 35 से अधिक इंदिरा आवास योजना, 100 से अधिक सामाजिक सुरक्षा पेंशन, आंगनवाड़ी भवन, सड़के, शत-प्रतिशत शौचालय बनाने का कार्य पूर्ण कर लिया है। दुर्गा के शब्दो में ’’मैं चाहती हूँ कि वह दिन जल्दी आये जब गांव में गांव के लोगों का राज हो गांव के लोग अपनी समस्या के लिए स्वयं ही निदान खोजें और गांव के विकास में प्रत्येक व्यक्ति की प्रत्यक्ष भागीदारी होकर ग्राम स्वराज्य की परिभाषा सार्थक हो।’’
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महिला जनप्रतिनिधि एवं मनोवैज्ञानिक पक्ष | |||||||||||||||||||||||||||||
पंचायतराज संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि -
मध्यप्रदेश में इस दिशा में प्रयास शुरू हो चुका है। संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन पर अमल करते हुए त्रि-स्तरीय पंचायतीराज संस्थाओं और नगरपालिकाओं के चुनाव संपन्न कर प्रदेश ने अपूर्व ख्याति प्राप्त की है। अगस्त 1994 से सरकार के कई विभागों के अधिकार और कर्तव्य पंचायतराज संस्थाओं को सौंपे जा चुके हैं। स्थानीय शासन की सभी संस्थाओं में महिलाओं को एक तिहाई प्रतिनिधित्व देने की सबसे पहले पहल कर मध्यप्रदेश ने और ख्याति अर्जित की है। गांव, विकास खंड और जिला स्तर पर सत्ता की पूनर्रचना करने की दिशा में पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। वर्ष 2009-2010 में मध्यप्रदेश में सम्पन्न हुये पंचायतराज संस्थाओं के प्रतिनिधियों के निर्वाचन में महिलाओं के आरक्षित स्थानों से अधिक संख्या लगभग 52 प्रतिशत निर्वाचित होकर पंचायतों की बागडोर सम्हालें हुये हैं। कुल प्रतिनिधियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बानगी निम्न विवरण में देखी जा सकती है।
अगर हम गौर करें तो पायेगें कि जो जनप्रतिनिधि निर्वाचित होकर समाज कार्य में आगे रहीं हैं उनकी भूमिका समाज में क्या रही है। महिला प्रकृति की होने के नाते इनके स्वभाव भी बहुत मायने रखता है। महिलाओं के स्वभाव महिलाओं की प्रकृति क्या है? वह भावुक, आश्रित, उदासीन और आज्ञापालन में सुख महसूस करने वाली होती है। उसे गृह प्रबंध एवं बच्चे पालन, मां और पत्नी के रूप में क्रियाशील रहने में ही अत्याधिक आनन्द प्राप्त होता है। स्त्री और पुरूषों के मध्य स्पष्ट भेद है। दोनों के मनोविज्ञान अलग अलग हैं। यह सर्व प्रचलित बात है। किन्तु आधुनिक मनोविज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि महिलाओं के विषय में हमारी धारणायें मिथ्या हैं। हम पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं। यह बात सही है कि पुरूषों और महिलाओं में शारीरिक रचना में भेद है किन्तु महिला और पुरूषों के व्यवहार का अन्तर सामाजिक प्रक्रिया का परिणाम है क्योंकि बचपन से ही दोनों को उच्चता और हीनता की शिक्षा दी जाती है। इसका परिणाम है कि जैसे जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे महिलाओं की हीनता भी बढ़ते जाती है। षिक्षा के अभाव में यह हीनता स्थायी बन कर रह जाती है। प्रत्येक समाज हमेशा अपने बच्चों को अपने विचारों और आदर्शों के अनुरूप शिक्षित करता है और इस तरह स्त्री पुरूष उस प्रकार बनते हैं जिस प्रकार समाज चाहता है। भारतीय समाज एक प्राचीन समाज है। इसकी प्रकृति परम्परावादी है। अतः इसमें किसी क्रांतिकारी परिवर्तन होने के अवसर भी बहुत कम के बराबर हैं। |
प्रदेश के महिला मतदाता उम्मीदवार और जनप्रतिनिधि सभी इस समस्या से प्रभावित हैं या पूर्वाग्रहों से कम या अधिक ग्रस्त हैं। कई जनप्रतिनिधियों के विचार तुलसीदास की इस उक्ति को प्रमाणित करते हैं ‘‘परउपदेश कुशल बहुतेरे’’ अर्थात वे संपूर्ण महिला स्वतंत्रता और समानता के पक्षपाती थे परन्तु स्वयं अपने परिवार में इसके विपरीत अर्थात समाज में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार कार्य करने के आदी हैं। महिला जनप्रतिनिधियों को दो वर्गो में विभाजित कर सकते हैं। पहले तो राजपरिवार, सम्पन्न घरानों से संबंधित महिला जनप्रतिनिधि। द्वितीय अन्य महिला जनप्रतिनिधि। दोनों वर्गो की स्थिति भिन्न हैं। अतः समस्यायें भी अलग अलग हैं। प्रथम वर्ग जिसमें राजपरिवार, सम्पन्न घरानों से संबंधित महिला जनप्रतिनिधि शामिल हैं इनमें राजकुल या अपने घरानों की श्रेष्ठता का भाव रहता है। अतः वे निर्वाचकों से सीधा संबंध स्थापित करने में, उनसे व्यक्तिगत मेलजोल करने में असमर्थ रहती हैं। सामान्य जन की दृष्टि में वे विशेष ओर पूज्यनीय हैं। यह भावना बहुसंख्यक समुदाय में आज भी कायम है। जो जनप्रतिनिधि विशिष्ठ अभिजात्य वर्ग की हैं उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है। उनके अधीनस्थ अनेक व्यक्तिगत सेवक रहते हैं। जिनके माध्यम से वे जनसम्पर्क के कार्यो को सम्पादित करती हैं। ऐसी जनप्रतिनधियों को अपने संवैधानिक ईकायों के सदस्य के रूप में मिलने वाले वेतन भत्ते में कोई आकर्षण नहीं होता। उनका उद्देश्य अपने सम्मान और गौरव में निरन्तर वृद्धि करते रहना होता है। द्वितीय, सामान्य महिला जनप्रतिनिधियों की समस्या अलग किस्म की होती है। वे महिला जनप्रतिनिधि जिनके भरे पूरे परिवार होते हैं वे लोक कार्यो के उपरांत अपना अधिकांश समय परिवार या पारिवारिक कार्यों में देना आवश्यक समझती हैं। परिवार का भी कुछ न कुछ आग्रह यही रहता है कि वे ज्यादातर समय परिवार को दें। इस मनोविज्ञान का परिणाम यह होता है कि ये जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र में व्यापक जन सम्पर्क नहीं कर पातीं । उनके स्थान पर निकटतम रिश्तेदार और परिचित व्यक्ति आदि ही सामान्यतः विशेष सम्पर्क सूत्र रहते हैं भेंटवार्ता के दौरान कई महिला जनप्रतिनिधियों ने यह स्वीकार किया जब वे पहली बार निर्वाचित होकर आयीं तो उन्हें बहुत सारे व्यक्तियों के बीच बोलने में संकोच का अनुभव हुआ। उनका यह संकोच केवल मनोवैज्ञानिकहीनता थी जो कि निश्चित ही समय के साथ दूर हो जाती है। यह भी देखने मे आया है कि अनुभवी जनप्रतिनिधि अपने अधिकारों के प्रति काफी सजग रहीं हैं। जब उन्हें कभी बोलने का अवसर नहीं मिलता या कम मिलता है वे कहने लगती हैं कि महिला जनप्रतिनिधियों को बोलने का अवसर नहीं दिया जा रहा है या कम दिया जा रहा है या पक्षपात किया जा रहा है। वे अपना रोष भी प्रकट करती हैं। वर्तमान में पंचायतराज संस्थाओं के माध्यम से जो महिला जनप्रतिनिधि निर्वाचित होकर आ रहीं हैं उनकी हिम्मत अब बढ़ी है। दूसरी सफल महिला जनप्रतिनिधि को देख कर उनमें भी अब उत्साह आ रहा है।
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विकास की कहानी सरपंच की जुबानी | |||||||||||||||||||||||||||||
समाज में सदियों से ही महिलाओं का स्थान गौरवशाली रहा है। पौराणिक कथाऐं और इतिहास इस बात की साक्षी है कि महिलाऐं न केवल पूज्य रही है बल्कि समाज को नेतृत्व प्रदान करने में उन्होने महत्वपूर्ण एवं अग्रणी भूमिका निभाई है। आधुनिकता के नाम पर जब से पुरूष प्रधान समाज की स्थापना हुई, महिला का स्थान गौण हो गया एवं महिलाओ का ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में सहभागिता कम होने लगी। सन् 1993 में पारित 73वा सविधान संशोधन विशेष रूप से पंचायतीराज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित होना ग्रामीण विकास के लिए कारगर साबित हुई। इसी पंचायत राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्राम पंचायत वनगाय जनपद पंचायत छतरपुर जिला छतरपुर की सरपंच श्रीमती कुवंरवाई पटेल कहती है कि ग्रामीण क्षेत्रो के विकास में महिलाओं की भागीदारी पहले कुछ भी नही थी। हमारी घर के कार्यो के अलावा कभी भी अन्य कार्यो की भागीदारी में कोई पुछ परख नही थी। लेकिन जब से महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत् आरक्षण पंचायतो में किया गया है तब से हमारी भूमिका विकास क्षेत्रों में अधिक हो गई है। अब हमारा अधिकार कोई नही छीन सकता, क्योंकि यह हमारा संवैधानिक अधिकार है इसी संवैधानिक अधिकार के अन्तर्गत मैं अपने ग्राम में विकास के कार्य करा रही हूँ जिसको बताने में मुझे गर्व हो रहा है। अपने ग्राम में स्वच्छता हेतु नालियां बनवाई, खुले शौच करने वालो को इस शौच क्रिया से होने वाले स्वास्थ्य संवंधित एवं सामाजिक दुष्परिणाम से अवगत करा कर उन्हे शासन से सहायता प्राप्त करा कर के सस्ते और टिकाऊ शौचालय बनवाने हेतु प्रेरित किया एवं बने हुए शौचालयो का प्रयोग करने के लिए दिशानिर्देश बनवाई और ग्राम सभा में सभी की सहमति से पास करवाया मेरे गाँव में पलायन की समस्या सबसे ज्यादा थी। नरेगा के अन्तर्गत शासन से प्राप्त राशि का उपयोग रोजगार उपलब्ध कराने में एवं अपनी परिसंत्तियो का संरक्षण करने में हम सफल हो रहे हैं एवं इस योजना के अन्तर्गत सड़के, तालाब आदि का निर्माण करवाई। ग्राम के तालाबो एवं सड़को के पास वृक्षारोपण का कार्य करवाया जिससे हरियाली दिखने लगी है। |
मेरे गाँव में पहले केवल एक आंगनवाड़ी थी जो कभी-कभी खुलती थी बच्चे नही आते थे। सर्वप्रथम मैने एक आंगनवाड़ी केन्द्र खोलने का प्रस्ताव रखा जिसको सर्वसम्मति से मान लिया गया और आज दो आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित है निरंतर उन केन्द्रो की निरख परख की जाती है। मेरे ग्राम में प्राथमिक विद्यालय तो था लेकिन उसकी स्थति ठीक नही थी। बच्चो को शिक्षा प्राप्त करने के लिए भवनो की कमी थी, सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत 4 भवनो का निर्माण करवाया जिसमें 3 अध्ययन कक्ष एवं 1 अतिरिक्त कक्ष का निर्माण करवाया गया। मध्यान भोजन कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वसहायता समूहो द्वारा आंगनवाड़ी केन्द्र एवं विद्यालय में भोजन वितरण किया जाता है। पूर्व में जो समूह था उसकी कार्य प्रणाली संतोषजनक नही थी, क्योंकि वह एक बाहुबलि व्यक्ति का समूह था, मैने अपने सक्षम अधिकारी से चर्चा करके यह कार्य दूसरे समूह को सौपा जो आज अच्छा कार्य कर रही है एवं मीनू अनुसार पोषण बच्चो को प्राप्त हो रहा है। मेरे इस कदम को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियो की अहम भूमिका रही है जिनके मार्गदर्शन में इतनी सफलता प्राप्त की है। इसमें मेरे क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों, जिला अध्यक्ष, जनपद सदस्य, उपसरपंच एवं पंच, आदि के साथ-साथ अधिकारियों का भी सहयोग प्राप्त हुआ उनके बिना इन सभी कार्यो को करना बहुत ही मुश्किल था। अब मेरा एक ही लक्ष्य है कि मैं अपने ग्राम पंचायत को निर्मल ग्राम पुस्कार से सम्मानित करवाऊँ, निरंतर कार्य कर रही हूँ मुझे आशा है कि मेरे गाँव के लोग इस कार्य में सहयोग करेगे एवं यह गाँव इस क्षेत्र का एक विकसित गाँव कहलायेगा। अगर इसी तरह अन्य क्षेत्र की महिलाये भी आगे आये तो क्षेत्रीय विकास संभव हैं नारी शाक्ति वर्तमान समय में बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। इसे सही दिशा में ले जाने की जरूरत है।
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बदलती तस्वीर | |||||||||||||||||||||||||||||
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ग्रामीण विकास और महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी | |||||||||||||||||||||||||||||
भारत के संदर्भ में ग्रामीण विकास को एक प्रक्रिया है भारतीय जन-जीवन के ताना-बाना को सतही धरातल तक ही सीमित रखना माना जा सकता है। ग्रामीण विकास तो आदिकाल से हमारे जीवन का अंग रहा है। हमारे मनीषियों ने इसे एक दर्शन और साधना के रूप में स्वीकार किया। यदि रामराज्य से लेकर चाणक्य तक तथा गुप्त वंश से लेकर मध्य युग तक की ऐतिहासिक रचनाओं रूपी निधि पर हम निगाह डालते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी की पूरी प्रशासकीय व्यवस्था ग्रामीण स्तर से ऊपर की तरफ जाती थी। चाहे वह कौटिल्य के जमाने का प्रजातंत्र हो या बाद के काल का राजतंत्र सब में ग्रामीण जीवन की सुख सुविधाओं और सर्वागींण विकास पर ही बल दिया गया है। जिस देश में लगभग तीन चैथाई आबादी गांव में बसी हो और कृषि ही अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हो उस देश में ग्रामीण विकास के बिना राष्ट्र के विकास की कल्पना ही भला कैसे संभव है यही कारण है कि योजनाबध्द विकास की प्रक्रिया के प्रथम सोपान यानी पहली पंचवर्षीय योजना से ही ग्रामीण विकास सरकार की मुख्य प्राथमिकताओं में शामिल रहा है। देश की बहुत बड़ी जनसंख्या, विस्तृत क्षेत्रफल तथा सीमित संसाधनों के कारण अपेक्षित परिणाम चाहे नहीं मिल पाए है, परन्तु यह भी सत्य है कि सरकार के अब तक के प्रयासों से ऐसा बुनियादी ढाँचा खड़ा हो चुका है जिसके बल पर ग्रामीण विकास का सपना साकार होने की आशा की जा सकती है। भारत जैसे विशाल देश में भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में विभिन्नता के कारण ग्रामीण विकास के लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करना आसान नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में वस्तुत, ग्रामीण विकास को एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखा जाना आवश्यक है। बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, बेरोजगारी, भूमि तथा अन्य सभी संसाधनों का असामान्य बंटवारा, सामाजिक अन्याय जैसी अनेक समस्याएं ग्रामीण भारत के विकास में बाधक हैं। महात्मा गांधी ने सच कहा था कि- भारत का आधार और आत्मा गांव हैं। यदि भारत का विकास करना है तो गांवों तथा ग्रामवासियों का विकास करना होगा। आजादी के बाद बने भारतीय संविधान और उसमें होते रहे संशोधनों में इस तथ्य को बराबर महसूस किया जाता रहा कि महिलाओं की भागीदारी सार्वजनिक क्षेत्रों में बढ़ाना आवश्यक है। सन् 1959 में बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर त्रि-स्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था लागू की गई। तब भी यह माना गया कि देश का समग्र विकास महिलाओं को अनदेखा करके नहीं किया जा सकता। इसलिए पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने तथा पंचायतों में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 1992 में 73 वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम पारित किया गया। इस संशोधन अधिनियम के द्वारा ग्राम सभा का गठन होना अनिवार्य हो गया। इस व्यवस्था का प्रभाव हुआ कि देश भर में लाखों महिलाएं पंचायतों के नेतृत्व हेतु |
मैदान में आ गईं। इस संशोधन के माध्यम से जहाँ एक और पंचायतीराज व्यवस्था को देश के लोकतांत्रिक प्रशासन के तृतीय सोपान के रूप में संवैधानिक स्वीकृति प्राप्त हुई वहीं दूसरी ओर महिलाओं के अस्तित्व और अधिकार को भी स्वीकार किया गया।
संविधान का यह प्रावधान महिलाओं की छिपी शक्ति को उजागर करने का सार्थक कदम था । इसके बाद देश के विभिन्न राज्यों में पंचायत चुनावों की घोषणा की गई। इस चुनाव में लगभग तीस लाख महिलाओं ने भाग लिया। विश्व के किसी अन्य देश में पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटों का आरक्षण नहीं किया गया है। वर्तमान संदर्भों में देखा जाय तो बिहार के बाद मध्यप्रदेश में आने वाले पंचायती चुनावों में यह प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया है और यह सब इसलिए भी हुआ है कि महिलाओं की शक्ति को अब पहचान मिल चुकी है और उन्हौने कहीं अधिक संवेदनशीलता के साथ अपने पदों पर रहकर न्याय किया है। ग्रामीण राजनैतिक क्षेत्र में कुछ वर्षो पूर्व तक महिलाओं की भूमिका नगण्य रही है तथा पंचायतों में उनका प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर रहा है। आज ग्राम पंचायत से जिला स्तर की संस्थाओं में महिलाएं निर्वाचित होकर ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यद्यपि महिलाओं के लिए यह नया क्षेत्र है तथा सामन्ती मनोवृत्ति से जकड़े पुरूष प्रधान समाज में उन्हे पुरूषों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है परन्तु उसका मुकाबला करते हुए महिलाओं ने अशिक्षित होने के बाद भी अपने आप को ज्यादा संवेदनशील और बेहतर प्रशासक, कम समय में ही सिद्ध कर दिया है। अब राजनैतिक दलों को भी अधिक से अधिक महिलाओं को सम्मानजनक पद देने पड़ रहे है। ग्रामीण विकास के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक तीन पहलू हैं जो परस्पर एक दूसरे से सम्बध्द हैं। इनमें से आर्थिक विकास में महिलाओं का सर्वाधिक योगदान है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा पुरूषों की तुलना में दो गुना अधिक श्रम किया जाता है, जहाँ एक पुरूष प्रतिदिन दस घंटे कार्य करता है वहीं एक महिला प्रतिदिन सोलह घंटे कार्य करती हैं लेकिन चूंकि प्रत्यक्ष आय में उसका योगदान कम होता है। अतः उसके योगदान को वह महत्व प्राप्त नहीं होता जिसकी वह अधिकारिणी है। जहाँ तक ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक दृष्टि से ग्रामीण महिलाओं की स्थिति का प्रश्न है वह स्थिति दयनीय है फिर भी जनतांत्रिक माहौल व महिलाओं की भागीदारी के चलते स्थितियों में बदलाव आना प्रारंभ हो गया है। कुछ समय में देश के कुछ हिस्सों में ग्रामीण महिलाओं ने अभूतपूर्व जागृति का परिचय दिया है। मणिपुर, आंध्र प्रदेश तथा हरियाणा में शराब बंदी लागू करने के पीछे ग्रामीण महिलाओं के आंदोलन की ही एकमात्र भूमिका रही है। मणिपुर में तो ग्रामीण महिलाओं ने न केवल शराब बंदी के लिए आंदोलन चलाया बल्कि शराब पीने वाले पुरूषों का सामाजिक बहिष्कार किया । इसके अलावा अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में इन चुनी हुई महिलाओं ने सामाजिक बुराईयों तथा अन्याय के प्रति संघर्ष का बिगुल बजाकर उन पर काबू पाने में आशातीत सफलताएं अर्जित कर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किए है।
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आदर्श ग्राम पंचायत | |||||||||||||||||||||||||||||
बुन्देलखण्ड के छतरपुर जिले की ग्राम पंचायत मऊसहानियां जो जनपद पंचायत नौगांव के अंतर्गत आती है। यहां पर लगभग 10 वर्ष पूर्व गांव की स्थिति बहुत दयनीय थी। इस गांव में पहले जल की समस्या, उपज की समस्या एवं सीमित आय के साधन थे। जल की समस्या की बजह से हमेंशा जमीन सूखी रहती एवं दरारें पड़ जाती थी। कृषि उपज भी बहुत कम मात्रा में उत्पादित होती थीं एवं यह सभी समस्या होने से आय के साधन सीमित थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तथा लोगों में जागरूकता एवं जनभागीदारी सुनिश्चित नहीं थी। पंचायत चुनावों में महिला आरक्षण से महिलाओं में जागरूकता आयी है, इसी जागरण के कारण यहां पर सरपंच एवं सचिव दोनों महिला है। महिला होनें पर गर्व है। उन्हें गांव के विकास कार्य करने का अवसर मिला। बाद में इन दोनों ने गांव वालों से मशवरा किया, विचार पूछे गए एवं समस्याओं के प्रस्ताव रखे गए फिर इन सबने मिलकर पहले जल की समस्या के लिए प्रयास करना शुरू किया इन सभी ने पहाड़ों पर जल ग्रहण मिशन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की विधियां अपना कर जैसे बोल्डर चेक, बलुआ पत्थर आदि से धीरे-धीरे जल स्तर को ऊपर उठाते हुये पहाड़ों के निचले हिस्सों में तालाब निर्माण करवायें एवं बने हुये तालाब पर मरम्मत कार्य करवाये। साथ ही बावडि़यों की भी मरम्मत एवं निर्माण कार्य करवाया। जिससे धीरे-धीरे आज जल का स्तर बढ़ गया एवं पर्याप्त मात्रा में जल आपूर्ति होने लगी। भूमि की जांच एवं परीक्षण का कार्य एवं सलाह लेकर कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से मिट्टी की जांच एवं कृषि उपज की मात्रा उत्पादन की बढ़ोत्तरी के बारे में सलाह लेकर सभी जन वासियों ने अपनी-अपनी जमीन पर इनकी सलाह का उपयोग कर भूमि उपज समस्या से निदान प्राप्त कर आर्थिक स्तर को ठीक किया। जल एवं भूमि की समस्या के निदान के उपरंात बैठक सभा के लिये एक सामुदायिक भवन का निर्माण कार्य हुआ। जगह-जगह पर सरकारी जमीनों पर बाजार बैठकी का निर्माण कार्य हुआ। ग्राम को स्वच्छ बनाये रखने के लिये घर-घर शौचालयों का निर्माण एवं जन जागरूकता बढ़ाई गई। ताकि गांव, महामारियों से दूर एवं स्वच्छ स्वस्थ्य रहे। ग्राम पंचायत अपने स्वयं के व्यय के लिये बचत निधि से स्वयं निर्वहन करती है। |
जैसे 1. जल कर लगाकर 2. बाजार बैठकी की कर वसूल कर एवं नई बाजार बैठकी के लिये पगड़ी जमा करवाना। 3. सामुदायिक भवन का उपयोग विवाह कार्यक्रम के लिये, पार्टी कार्यक्रम के लिये एवं अन्य आयोजित कार्यक्रमों के लिये प्रतिदिन के हिसाब से आमदनी का श्रोत बना हुआ है। यह ग्राम पंचायत आज जल, जंगल, जमीन से परिपूर्ण एवं आर्थिक दृष्टि से खुशहाल है।
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स्वास्थ्य परीक्षण शिविर | |||||||||||||||||||||||||||||
महात्मा गांधी राज्य ग्रामीण विकास संस्थान, अधारताल, जबलपुर में दिनांक 25 फरवरी 2012 को निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस स्वास्थ्य शिविर में संस्थान के द्वारा नियुक्त डॉ. सुबोध अर्गल एवं टीम ने संस्थान के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का ब्लडग्रुप, हीमोग्लोबिन एवं शर्करा परीक्षण कर इसकी रिपोर्ट प्रदान की। स्वास्थ्य परीक्षण शिविर की रिपोर्ट प्रदान करते समय डॉ. सुबोध अर्गल ने डायबिटीस एवं एनीमिया से संबंधित कई आवष्यक तथ्यों से सभी अधिकारियों/ कर्मचारियों को अवगत कराया। जिन अधिकारियों/ कर्मचारियों में हीमोग्लोबिन कम पाया गया, इन्हें निःशुल्क दवा वितरण किया गया। |
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प्रकाशन समिति | |||||||||||||||||||||||||||||
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